महामारी में गंदगी और प्रदूषण खतरनाक

sanjay sharma

सवाल यह है कि प्रदेश के कई शहरों में गंदगी और प्रदूषण का स्तर कम क्यों नहीं हो रहा है? राजधानी लखनऊ में स्थितियां बदतर क्यों होती जा रही हंै? आखिर नगर निगम और नगर पालिकाएं क्या कर रही हैं? प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइंस का पालन क्यों नहीं कराया जा रहा है? शहरों की साफ-सफाई के लिए जारी भारी भरकम धनराशि कहां खर्च की जा रही है?

कोरोना ने पूरे देश में कोहराम मचा रखा है। दिल्ली समेत कई अन्य राज्यों में दूसरी लहर ने दस्तक दे दी है। अब तक 93 लाख से अधिक लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं जबकि एक लाख 35 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में भी कोरोना से पांच लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके है और इसकी रफ्तार फिर बढऩे लगी है। इसके बावजूद राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के तमाम शहरों में गंदगी और प्रदूषण पर नियंत्रण लगता नहीं दिख रहा है। कोरोना काल में ये दोनों ही बेहद खतरनाक हो सकते हैं। सवाल यह है कि प्रदेश के कई शहरों में गंदगी और प्रदूषण का स्तर कम क्यों नहीं हो रहा है? राजधानी लखनऊ में स्थितियां बदतर क्यों होती जा रही हैं? आखिर नगर निगम और नगर पालिकाएं क्या कर रही हैं? प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइंस का पालन क्यों नहीं कराया जा रहा है? शहरों की साफ-सफाई के लिए जारी भारी भरकम धनराशि कहां खर्च की जा रही है? कूड़ा उठान से लेकर निस्तारण तक की समुचित व्यवस्था आज तक क्यों नहीं की जा सकी है? कूड़ा फेंकने और जलाने पर नियंत्रण क्यों नहीं लग सका है?
कोरोना काल में गंदगी और बढ़ता प्रदूषण जानलेवा साबित हो सकता है। गंदगी जहां संक्रमण को बढ़ा सकती है वहीं प्रदूषण कोरोना संक्रमित मरीजों की जान को खतरा साबित हो सकता है। चूंकि कोरोना फेफड़े को संक्रमित करता है और मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है, ऐसे में वायु प्रदूषण खतरनाक होगा और यह मृत्यु दर को बढ़ा सकता है। गंदगी और प्रदूषण के मामले में उत्तर प्रदेश के कई शहरों की हालत बेहद खराब है। राजधानी लखनऊ की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। यहां प्रदूषण का स्तर खराब है। जहां तक गंदगी का सवाल है तो यहां सडक़ों से लेकर गलियों तक में गंदगी का अंबार है। कुछ पॉश कॉलोनियों को छोड़ दिया जाए तो हालात बेहद खराब है। प्लाटों में कूड़ा फेंका और जलाया जा रहा है। प्रतिबंध के बावजूद खुद कर्मचारी खुले में कूड़ा जला रहे हैं। डोर-टू-डोर कूड़ा उठान का दावा खोखला साबित हो चुका है। आज तक कूड़े के निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं की जा सकी है। यह स्थिति तब है जब सरकार हर साल शहर की साफ-सफाई के लिए भारी भरकम बजट उपलब्ध कराती है। साथ ही सफाई व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए सफाईकर्मियों की बड़ी संख्या में तैनाती की गई है। यदि सरकार प्रदूषण और गंदगी से प्रदेश को मुक्त करना चाहती है तो उसे न केवल संबंधित विभागों को जवाबदेह बनना होगा बल्कि लापरवाह कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी करनी होगी। साथ ही प्रदूषण नियंत्रण की गाइडलाइंस का कठोरता से पालन कराना होगा।

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