सवाल यह है कि इन हादसों के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या प्रदेश में सडक़ों की बनावट, लचर टै्रफिक सिस्टम और यातायात नियमों का उल्लंघन हादसों के कारण हैं? क्या सडक़ सुरक्षा जागरूकता अभियान बेअसर हो चुका है? क्या अप्रशिक्षित ड्राइवरों के कारण स्थितियां लगातार बिगड़ती जा रही हैं? आखिर टै्रफिक विभाग क्या कर रहा है?
Sanjay sharma
राजधानी में हुए सडक़ हादसों में एक महिला समेत तीन की मौत हो गई जबकि आधा दर्जन लोग घायल हो गए। घायलों का इलाज कराया जा रहा है। ये हादसे यातायात व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी हैं। आलम यह है कि प्रदेश में आए दिन हो रहे सडक़ हादसों के कारण लोगों की मौतें हो रही हैं। सवाल यह है कि इन हादसों के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या प्रदेश में सडक़ों की बनावट, लचर टै्रफिक सिस्टम और यातायात नियमों का उल्लंघन हादसों के कारण हैं? क्या सडक़ सुरक्षा जागरूकता अभियान बेअसर हो चुका है? क्या अप्रशिक्षित ड्राइवरों के कारण स्थितियां लगातार बिगड़ती जा रही हैं? आखिर टै्रफिक विभाग क्या कर रहा है? तमाम जुर्माने और चालान के बाद भी हालात क्यों नहीं सुधर रहे हैं? क्या सडक़ हादसों में होने वाली मौतों को लेकर सरकारी तंत्र गंभीर नहीं है?
प्रदेश में सडक़ हादसों में लगातार इजाफा हो रहा है। हर साल हजारों लोग वाहनों की चपेट में आकर दम तोड़ रहे हैं। वहीं इससे कहीं अधिक लोग घायल हो रहे हैं। इन हादसों के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। हकीकत यह है कि सडक़ों की गलत बनावट व इनमें पड़े गड्ढे हादसों की प्रमुख वजह हैं। इन गड्ढों से होने वाले हादसों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी अपनी चिंता जता चुका है। प्रदेश सरकार ने सडक़ों को एक साल के भीतर गड्ढा मुक्त करने का वादा किया था लेकिन ढाई साल बाद भी कोई खास बदलाव नहीं आया है। राजधानी की तमाम सडक़ों में बड़े-बड़े गड्ढे पड़ेे है और ये हादसों को न्योता दे रहे हैं। इसके अलावा सडक़ों पर ट्रैफिक नियमों का कड़ाई से पालन नहीं कराया जा रहा है। अधिकांश चौराहों पर सिग्नल सिस्टम ठीक नहीं है। यही नहीं इन चौराहों पर टै्रफिक पुलिस भी नजर नहीं आती है। भ्रष्टïाचार का आलम यह है कि टै्रफिक के सिपाही ओवर लोड वाहनों से वसूली में व्यस्त रहते हैं। लिहाजा सडक़ों पर यातायात नियमों की धज्जियां उड़ती रहती है। अप्रशिक्षित ड्राइवरों और कम उम्र के किशोर सडक़ों पर फर्राटा भर रहे हैं। इनके कारण भी हादसे होते हैं। सडक़ों की गुणवत्ता का आलम यह है कि नयी सडक़ भी पहली बारिश नहीं झेल पाती है और पूरी तरह उखड़ जाती है। सडक़ सुरक्षा जागरूकता अभियान का कोई असर नहीं दिख रहा है। लोग हेलमेट व सीट बेल्ट बांधने से बच रहे हैं। जाहिर है यदि सरकार हादसों पर नियंत्रण लगाना चाहती है तो उसे न केवल यातायात व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करना होगा बल्कि गुणवत्ता युक्त सडक़ों का निर्माण भी सुनिश्चित करना होगा। साथ ही नियमों का उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती से पेश आना होगा।