ज्वालामुखी के पास रहते हैं ये जानवर

अलग ही माहौल में रहने की है काबिलियत

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
दुनिया में ज्वालामुखी के पास की जगह ऐसी होती हैं, जहां पर जीवन के लिए माहौल बहुत ही अलग होता है। यहां पर पाए जाने वाले जानवर कुछ अलग ही तरह के होते हैं। इनकी क्षमताएं और भोजन तक अलग ही तरह का होता है। ज्वालामुखी चाहे सक्रिय हो या ना हो, पर वहां के हालात बाकी दुनिया से बहुत अलग होते हैं। यहां की जमीन भी बहुत ही अलग तरह की होती है। वहीं अधिकांश ज्वालामुखी द्वीपों पर या फिर पानी के नीचे होते हैं। इसलिए ये जानवर तो पानी में रहने वाले होते हैं या फिर पानी के पास रहने वाले होते हैं। 1902 और 1932 में फ्रेंच द्वीप मार्टीनीक के माउंट पेली पर दो बार बहुत बड़ा ज्वालामुखी फूटा। फिर भी यहां एक मेंढक की प्रजाति जिसे मार्टीनीक वोल्केनो फ्रॉग के नाम से जाना जाता है, जिंदा रह गए। विस्फोटों से इन मेंढकों पर अस्तित्व का संकट जरूर आ गया, लेकिन ये जिंदा रह गए थे। वोल्फ नाम के गैलापैगोस ज्वालामुखी द्वीप में सूखा और गर्मी होने के बावजूद यहां कुछ जानवर रहते हैं। लेकिन वैम्पायर ग्राउंड फिन्चेस के लिए यह जगह बहुत अच्छी है। इसके पीछे उनकी खुद को हालात के मुताबिक ढालने की क्षमता जिम्मेदार है। ये कैक्टस का पराग को खाती हैं और बूबी सीबर्ड का खून चूसती हैं। गैलोपैगोस द्वीपों के फेर्नानडीना द्वीप में कई विलुप्त होन का खतरा झेल रहे जानवर रहते हैं। इन्हीं में से एक गैलापैगोस येलो लैंड इगुआनास भी शामिल हैं। इनकी खास बात यह है कि ये ज्वालामुखी सक्रियता को पहचान लेते हैं। इससे ये ज्वालामुखी फूटने से पहले ही दूर सुरक्षित जमीन पर चले जाते हैं। तनजारिया के ओल डोन्यो लेन्गाई ज्वालामुखी के आसपास करीब 20 लाख लेसर फ्लेमिंगो रहते हैं। इनके पंख गुलाबी रंग के होते हैं और स्पिरूलिना नाम की पिगमेंट एल्गी खाते हैं जिससे इनके पंख गुलाबी होते हैं। जिस तालाब में रहते हैं वह दूसरे जानवरों के लिए रहने लायक बिलकुल नहीं है। लकिन लेसर फ्लेमिंगो के पैरों में एक परत उन्हें जलने से बचाती है। वे उबलते पानी में से नमक हटा कर पानी पी सकते हैं। हवाई के मौनुआ लोआ और किलौया ऐसे द्वीप हैं जहां बहुत सारी ओपिही देखने को मिलते हैं। ये जलीय घोंघे होते हैं जिनकी मजबूत पैर और शंकु के आकार की खोल होती है। ये चट्टानों पर चिपकी रहती हैं।पानी के अंदर जाकर इन्हें निकाले के चक्कर में सैकड़ों गोताखोरों की मौत हो चुकी है। इसी लिए इन्हें फिश ऑफ डेथ भी कहा जाता है। पोम्पेई वॉर्म ऐसे जीव हैं जो ज्वालामुखीय द्वार के अंदर ही रहते हैं। ये दुनिया में सबसे ज्यादा गर्मी झेल पाने वाले जानवर होते हैं। ये 105 डिग्री तक का तापमान झेलने में सक्षम हैं। वैज्ञानिकों को लगता है कि इनके शरीर पर छोटे बाल ज्वालामुखी वेंट के अंदर के गर्म माहौल में गर्मी से बचने में मदद करते हैं। कछुए की तरह ये भी अपना मुह अपने खोल से बाहर निकालते हैं। समुद्र के अंदर वॉल्केनिक जायंट ट्यूब वॉर्म समुद्री सतरह से निकलती गर्मी के कारण गर्म हुए पानी में रहते हैं। इसी गर्म पानी के खनिज इन कीड़ों के लिए पोषण का भी काम करते हैं। इन कीड़ों की आंतों में खास तरह के बैक्टीरीया होते हैं जो इन गर्म खनिजों को ऊर्जा में बदलते है। शिकारी जीवों से बचने के लिए ये अपनी ट्यूब को बंद भी कर सकते हैं। अगर इन्हें लंबे समय तक गर्मी ना मिले तो ये मर सकते हैं।

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