महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का है प्रतीक

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि कई कारणों से महत्व रखती है। एक मान्यता यह है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था और यह त्योहार उनके दिव्य मिलन का जश्न मनाने के लिए हर साल मनाया जाता है। साथ ही यह शिव और शक्ति के मिलन का भी प्रतीक है। महाशिवरात्रि का महापर्व हर साल फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। शिव भक्तों के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है। भोलेनाथ की पूजा के लिए महाशिवरात्रि का दिन सबसे अच्छा और शुभ माना जाता है, इसलिए शिव भक्त इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते है। महाशिवरात्रि का शाब्दिक अर्थ शिव की महान रात है। भगवान भोलेनाथ ने गृहस्थ जीवन जिया, साथ ही संस्यासी की तरह भी रहे। शरीर पर कपड़ों की जगह जानवरों की खाल, महलों में रहने की बजाए कैलाश पर्वत पर बर्फीले और सर्द माहौल में परिवार संग रहे। तरह-तरह के लजीज भोज की बजाए भांग धतूरा खाकर मस्त रहते। ऐसे हैं भोले भंडारी का जीवन। हालांकि सांसारिक चीजों से दूर रहने वाले भगवान शिव का व्यक्तित्व बहुत ही सरल माना जाता है। वह अपने भक्तों पर तुरंत खुश हो जाते हैं, तो वहीं रुष्ट भी बहुत जल्दी होते हैं।

तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 8 मार्च, 2024 को रात्रि 09 बजकर 57 पर शुरू होगी। वहीं अगले दिन यानी 09 मार्च, 2024 शाम 06 बजकर 17 मिनट पर इसका समापन होगा। जानकारी के लिए बता दें, शिवरात्रि की पूजा रात्रि को होती है, इसलिए इस दिन उदयातिथि देखना जरुरी नहीं है।

इतिहास

साथ ही यह शिव और शक्ति के मिलन का भी प्रतीक है। वहीं इस पर्व को लेकर ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन महादेव ने समुद्र मंथन के दौरान निकले जहर को पीकर दुनिया को अंधकार से बचाया था, जिसके चलते उनका गला नीला हो गया था और वे नीलकंठ कहलाएं। इसके अलावा महाशिवरात्रि शिव और उनके नृत्य तांडव के बारे में बात करती है। ऐसा कहा जाता है कि भोलेनाथ इस रात सृजन, संरक्षण और विनाश का अपना लौकिक नृत्य करते हैं।

भगवान शिव के गुण

एकाग्रता- इस ब्रह्मांड के सबसे बड़े योगी भगवान शिव को माना जाता है। हर परिस्थिति में खुद पर काबू रखना आसान नहीं होता लेकिन महादेव जब भी ध्यान पर बैठते तो दुनिया इधर से उधर हो जाए उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता है। उनके ध्यान को ही भंग करने के लिए एक बार देवताओं ने कामदेव को भेजा था।
सकारात्मकता- महादेव का एक गुण नकारात्मकता में रहते हुए भी सकारात्मक बने रहना है। जब समुद्र मंथन से विष बाहर आया तो सभी ने कदम पीछे कर लिए लेकिन महादेव ने स्वयं विष पिया। उनका यह गुण सिखाता है कि जीवन में नकारात्मकता आती है, लेकिन उससे गुजरते हुए सकारात्मक बने रहना चाहिए।
जीवन को खुलकर जीना- महादेव की जीवनशैली या उनके अवतारों को उन्होंने बिल्कुल अलग तरीके से जिया। कभी तांडव करते हुए नटराज हो गए तो कभी विष पीने वाले नीलकंठ, मां पार्वती को अपने में समाहित कर अर्धनारीश्वर हो गए तो कभी सबसे पहले प्रसन्न हो जाने वाले भोलेनाथ बन गए।

व्रत के लिए तैयार करें आलू पापड़

कहा जाता है कि भोलेनाथ का व्रत रखकर आप उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। उनकी अराधना से तमाम दुखों का भी नाश होता है। इसी के चलते इस दिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए लोग उनकी पूजा अचर्ना करते हैं। बहुुत से लोग तो व्रत भी रखते हैं। अगर आप भी महाशिवरात्रि का व्रत रखने का सोच रहे हैं, तो व्रत में खाने के लिए आलू के पापड़ आप पहले से ही तैयार करके रख सकते हैं। ये फलाहारी पापड़ महाशिवरात्रि के साथ-साथ अन्य व्रतों में भी काम आएंगे।

सामान

एक किलो उबले हुए आलू, सेंधा नमक स्वाद के अनुसार, 1/2 छोटी स्पून काली मिर्च, 1/2 छोटी स्पून जीरा।

विधि

व्रत वाले आलू के पापड़ बनाना बेहद आसान होता है। इसके लिए बस सबसे पहले एक बड़े बाउल में उबले हुए आलू को मैश करें। अगर आप चाहें तो आलू को कद्दूकस कर सकती हैं। इससे ये सही से मैश हो सकेंगे। इसके बाद इसमें सेंधा नमक, काली मिर्च, और जीरा डालें। सभी सामग्री को अच्छे से मिलाएं। इसे आपको आटे की तरह ही गूंथ लेना है। जब ये सही तरह से गुंथ जाए तो इससे छोटी-छोटी लोई बना लें। इन लोईयों को पापड़ की मशीन में रखकर इससे महीन पापड़ बना लें। इसे अब दो दिन की तेज धूप लगने दें। दो से तीन दिन तेज धूप लगने के बाद ये सूख जाएंगे। अब इसे आप महाशिवरात्रि के दिन घी में भूनकर इसका स्वाद ले सकते हैं।

 

 

 

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