सूखा बना BJP के लिए गले की फांस, सड़क पर उतरी कांग्रेस ने पलट दी बाजी

बेंगलुरु। लोकसभा चुनावों को लेकर पूरे देश का सियासी माहौल काफी गरमाया हुआ है। 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के साथ ही लोकसभा चुनावों का आधिकारिक रूप से बिगुल भी अब बज चुका है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अब 26 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनावों के दूसरे चरण की तैयारियों में जुट गए हैं। इस बीच अबकी बार 400 पार की उम्मीदों को लेकर लोकसभा चुनावों में आगे बढ़ रही भाजपा के लिए कर्नाटक में राह मुश्किल होती जा रही है। एक तो प्रदेश में भाजपा के अपने ही नेता उसके खिलाफ नाराजगी और बगावत पर उतर आए हैं। जिससे पार्टी के अंदर प्रदेश में खलबली मची हुई है। और जिस कर्नाटक को भाजपा साउथ में अपना सबसे मजबूत दुर्ग मान रही थी।

अब वो ही कर्नाटक में भाजपा की हालत काफी पतली नजर आ रही है। और चुनाव करीब आते-आते बीजेपी के लिए प्रदेश में मुश्किल कम होने की बजाय और बढ़ती जा रही हैं। अब प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस भी खुलकर बीजेपी के खिलाफ मैदान में उतर आई है। दरअसल, चुनाव के समय में पिछले काफी वक्त से कर्नाटक में सूखा राहत राशि को लेकर प्रदेश की कांग्रेस सरकार केंद्र भी मोदी सरकार पर हमलावर है और निशाना साध रही है। कांग्रेस की ओर से मोदी सरकार द्वारा कर्नाटक के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने का आरोप लगाया जा रहा है। इस मामले को लेकर देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी अपनी प्रतिक्रिया दे चुकी हैं। लेकिन मामला दबने का नाम ही नहीं ले रहा है।

क्योंकि एक ओर जहां भाजपा इसी मुद्दे को लेकर प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर निशाना साध रही है। तो वहीं दूसरी ओर राज्य की कांग्रेस सरकार केंद्र की मोदी सरकार पर लगातार भेदभाव और सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगा रही है। यही वजह है कि भाजपा के अपनों की बगावत के साथ-साथ प्रदेश में सूखा राहत राशि का मुद्दा लगातार बीजेपी के लिए गले की फांस बना हुआ है। ऐसे में अब जब लोकसभा चुनावों का आगाज हो चुका है और प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव बिल्कुल सिर पर हैं। तब सूखा राहत राशि को लेकर प्रदेश की कांग्रेस सरकार अब खुलकर मोदी सरकार के विरोध में उतर आई है।

अब एक बार फिर बेंगलुरू में कांग्रेस नेताओं ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार सहित कई नेताओं ने केंद्र द्वारा दिए जाने वाले सूखा राहत राशि को लेकर विरोध प्रदर्शन किया। राज्य सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार कर्नाटक के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है। इस दौरान कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की ओर से हमने केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

सिद्धारमैया ने हमला बोलते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह कर्नाटक के किसानों से नफरत करते हैं। 22 सितंबर को हमने केंद्र सरकार को ज्ञापन दिया। उसके बाद केंद्रीय दल आया और राज्य का निरीक्षण किया। सीएम ने बताया कि राज्य के 223 तालुके सूखे पड़े हैं। अमित शाह ने चेन्नापट्टनम आकर कहा कि राज्य सरकार ने ज्ञापन देर से जारी किया। सूखे से किसान परेशान हैं। अब तक हमने किसानों को 650 करोड़ रुपये बांटे हैं। निर्मला सीतारमण और नरेंद्र मोदी की वजह से कर्नाटक को राहत नहीं दी गई।.

वहीं इस दौरान कांग्रेस सांसद और महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि कर्नाटक के साथ बहुत बड़ा अन्याय किया जा रहा है। मोदी सरकार कर्नाटक के किसानों और लोगों से बदला लेना चाह रही है। भाजपा की यह प्रतिशोध की राजनीति आज सामने आ रही है। उन्हें 18,172 करोड़ रुपये के बिना कर्नाटक की धरती पर अपना पैर रखने का अधिकार नहीं है। इसलिए हमारे मुख्यमंत्री यहां बैठे हुए हैं। कर्नाटक के लिए न्याय करना होगा। कर्नाटक के प्रति मोदी सरकार की दुश्मनी खत्म होनी चाहिए।

इस बीच प्रदर्शन के दौरान ही मौजूद कर्नाटक कांग्रेस के विधायक रिजवान अरशद का कहना है कि हम कोई दान नहीं मांग रहे। हम अपना अधिकार मांग रहे हैं। जो केंद्र सरकार को करों के रूप में अदा करते हैं। जब हम संकट में हों, जब हमारे किसान संकट में हों तो इसे वापस देना चाहिए। हम गंभीर सूखे की चपेट में हैं, कर्नाटक का 95 फीसदी हिस्सा गंभीर सूखे की चपेट में है। पिछले 10 महीनों से बारिश नहीं हुई। पीएम मोदी ने हमें मुआवजा क्यों नहीं दिया? कांग्रेस विधायक ने आगे कहा कि ऐसा क्या है जो आपको कर्नाटक के खिलाफ खड़ा कर रहा है? इसलिए, हमें उच्चतम न्यायालय जाना पड़ा।

अब, उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है। इसलिए, मोदी सरकार इस सप्ताह मुआवजा जारी करने पर सहमत हो गई है। क्या हमें अपने अधिकारों के लिए अदालत जाना होगा? हम धरने पर क्यों बैठे हैं? क्योंकि यह फिर से नहीं होना चाहिए। वे दक्षिण भारतीय राज्यों के साथ भेदभाव नहीं कर सकते। कानून के अनुसार, हमें 17,800 करोड़ रुपये का मुआवजा मिलना चाहिए। हम कानून के अनुसार, सूखा राहत के अनुसार इसकी मांग कर रहे हैं।

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और कर्नाटक से राज्य की सूखे की चिंताओं का समाधान खोजने का आग्रह करते हुए संघीय ढांचे के भीतर मतभेदों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के महत्व पर जोर दिया। न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की एक पीठ ने केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरामनी और कर्नाटक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को संबोधित करते हुए संघीय प्रणाली के भीतर साझेदार के रूप में केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की समानता पर जोर दिया।

शीर्ष अदालत का यह रिमाइंडर राज्यों और केंद्र के बीच हालिया विवादों के मद्देनजर आया है, जिसमें कई राज्य केंद्र सरकार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का सहारा ले रहे हैं। तमिलनाडु ने केंद्र पर आपदा राहत निधि जारी करने में देरी करके राज्य की जरूरतों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया, जबकि केरल ने अपनी उधार सीमा में हस्तक्षेप के संबंध में सीधे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया है।

केंद्र सरकार से सूखा राहत नहीं मिलने पर कर्नाटक ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में राज्य में गंभीर मानवीय संकट को उजागर करते हुए छह महीने पहले राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) के तहत 18 हजार एक सौ इकहत्तर दशमलव 44 (18,171.44) करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के अनुरोध का हवाला दिया गया है। राज्य को फसल की काफी क्षति हुई है और 35,162.05 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है। यह वर्षा में भारी कमी के कारण गंभीर सूखे की स्थिति से उत्पन्न हुआ, जो पिछले 122 वर्षों में राज्य में तीसरी सबसे कम कमी थी।

राज्य ने तर्क दिया कि सहायता प्रदान करने में केंद्र की विफलता संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिसमें समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार शामिल है। सूखा राहत ज्ञापन और मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बावजूद, केंद्र ने अभी तक निर्णायक कार्रवाई नहीं की है। कर्नाटक ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत केंद्र के दायित्वों और आपदा राहत के लिए प्रासंगिक दिशानिर्देशों पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया।

राज्य ने स्थिति की तात्कालिकता पर प्रकाश डाला और अपने लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए त्वरित कार्रवाई का आग्रह किया। राज्य ने सूखा राहत के लिए ज्ञापन सौंपा, जिसमें फसल नुकसान इनपुट सब्सिडी के लिए 4,663.12 करोड़ रुपये, सूखे से प्रभावित परिवारों को मुफ्त राहत के लिए 12,577.9 करोड़ रुपये, पीने के पानी की कमी को दूर करने के लिए 566.78 करोड़ रुपये और मवेशियों की देखभाल के लिए 363.68 करोड़ रुपये शामिल हैं।

यहां बता दें कि 8 अप्रैल को पिछली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने राहत सहायता को लेकर सूखाग्रस्त कर्नाटक के साथ प्रतिस्पर्धा में शामिल होने के केंद्र के दृष्टिकोण पर सवाल उठाया। न्यायमूर्ति गवई ने राज्य सरकारों द्वारा कानूनी कार्यवाही का सहारा लेने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए ऐसी प्रतियोगिताओं से बचने की आवश्यकता पर जोर दिया। सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र ने देरी का कारण मौजूदा लोकसभा चुनाव को बताया। कर्नाटक सरकार ने सूखा राहत संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए एक सप्ताह तक इंतजार करने की इच्छा व्यक्त की।

फिलहाल अब सुप्रीम कोर्ट ने एक सप्ताह में केंद्र सरकार राहत राशि देने का निर्देश दिया है। लेकिन फिलहाल ये मुद्दा पिछले काफी वक्त से प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस द्वारा इस मुद्दे को धार देना भाजपा के लिए चुनाव में और भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button