जोशीमठ पीडि़तों के जख्मों पर सिर्फ डेढ़ लाख का मरहम

  • केंद्र से राहत पैकेज को रिपोर्ट का है इंतजार, जांच को आज जाएगी एनआईटी की टीम
  • मुआवजे पर सरकार की सिर्फ रस्म अदाएगी अधिकारियों से पीडि़तों की तकरार का दौर जारी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। जोशीमठ में भू-धंसाव से प्रभावित 723 परिवारों को डेढ़ लाख रुपये का सरकारी मुआवजा दिया जाएगा। अगर देखा जाए तो मुआवजे के नाम पर सिर्फ सरकार ने एक तरह से रस्म अदाएगी की है। हालांकि यह अंतरिम सहायता के रूप में प्रत्येक परिवार को दिया जाएगा। इसके अलावा दो होटल मलारी इन और माउंट व्यू को ही गिराया जाएगा। ऐसे में अब अन्य मकानों को नहीं ढहाया जाएगा। प्रशासन के साथ अभी स्थानीय लोगों की बैठक का दौर जारी है। वहां अभी तक के हालात की कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने समीक्षा की।
राष्ट्रीय  संकट प्रबंधन समिति (एनएमसी) की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने मुख्य सचिव डॉ.एसएस संधु से राहत एवं बचाव के लिए चल रहे कार्यों का ब्योरा लिया। उन्होंने प्रभावित जगहों से लोगों को जल्द से जल्द सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने के निर्देश दिए। उधर, केंद्र से राहत पैकेज के लिए जांच रिपोर्ट का इंतजार है। भू-धंसाव से प्रभावित जोशीमठ से अलग-अलग जांच दलों की रिपोर्ट आ जाने के बाद ही राज्य सरकार केंद्र को राहत पैकेज का प्रस्ताव भेजेगी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि केंद्रीय एजेंसियों से अनुरोध किया गया है ताकि जल्द से जल्द भू-धंसाव के कारण पता चल सकें।

एनआईटी का दल आज करेगा प्रभावित क्षेत्र का दौरा

एनआईटी (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) उत्तराखंड की चार सदस्यीय टीम भू-धंसाव प्रभावित क्षेत्र जोशीमठ का अध्ययन करने जाएगी। टीम जोशीमठ में जमीन धंसने के कारणों को ढूंढने के साथ ही समाधान के तरीके ढूंढेगी। सरकार के निर्देश पर विभिन्न संस्थाओं की टीम जोशीमठ का सर्वेक्षण कर रही है। वहीं, एनआईटी उत्तराखंड अपने स्तर पर चार इंजीनियरों को जोशीमठ भेज रही है। टीम आज जोशीमठ के लिए रवाना होगी। टीम का नेतृत्व सिविल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष डॉ. क्रांति जैन कर रहे हैं। उनके साथ ट्रांसपोर्टेशन इंजीनियरिंग के डॉ. आदित्य कुमार अनुपम और जियोटेक्नीक इंजीनियरिंग के डॉ. विकास प्रताप सिंह व डॉ. शशांक बत्रा शामिल हैं।

462 परिवारों को किया गया विस्थापित

जिला प्रशासन की ओर से अब तक 462 परिवारों को अस्थायी रूप से विस्थापित किया जा चुका है। लोगों को उनके घरों से सुरक्षित ठिकानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। प्रशासन की ओर से अब तक विभिन्न संस्थाओं-भवनों में कुल 344 कमरों का अधिग्रहण किया गया है। इनमें 1425 लोगों को ठहराने की व्यवस्था की गई है।

फिलहाल होटल मालिकों को राहत नहीं

चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना का कहना है कि आपदा अधिनियम के तहत जान-माल की सुरक्षा को देखते हुए दोनों होटलों को तत्काल ध्वस्त करने का निर्णय लिया गया है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो आसपास के आवासीय भवनों और हाईवे को क्षति पहुंच सकती है। साथ ही बिजली और पेयजल की लाइनों को भी नुकसान पहुंच सकता है।

मुआवजे पर सहमति नहीं फिर से धरना शुरू

मुख्य सचिव मिनाक्षी सुंदरम के मार्केट रेट से अधिक मुआवजा नहीं देंगे की बात पर स्थानीय लोग असहमति जता रहे हैं। व्यापारियों और स्थानीय लोगों के साथ प्रशासन की बैठक में मुआवजे पर सहमति नहीं बनी पाई है। मुआवजे को लेकर तकरार चल रही है और पीडि़त परिवारों ने फिर से धरना प्रारंभ कर दिया है। इस बीच सचिव मुख्यमंत्री मिनाक्षी सुंदरम ने कहा कि व्यापारी भरोसा रखें। पूरा प्रदेश है और सबको देखना है, लेकिन जोशीमठ मलारी इन होटल के मालिक ठाकुर सिंह राणा ने कहा कि उनकी मुख्यमंत्री प्रमुख सचिव के साथ बैठक बेनतीजा रही है। प्रशासन ने बदरीनाथ की तर्ज़ पर नहीं, मार्केट रेट पर मुआवजा देने की बात रखी थी, मगर हमे मार्केट रेट भी नहीं बताया जा रहा है। प्रशासन ने कहा कि रेट नहीं बता सकते हैं। इस पर हमने कह दिया कि हम भी नहीं उठेंगे।

बिहार में जातिगत जनगणना को सर्वोच्च अदालत में चुनौती, 13 को होगी सुनवाई

  • दायर जनहित याजिका में सरकार के फैसले को बताया संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन

 4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। बिहार की नीतीश कुमार सरकार की ओर से राज्य में कराई जाने वाली जातिगत जनगणना के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने मामले में तत्काल सुनवाई के लिए भी हामी भर दी है। सर्वोच्च न्यायालय याचिका पर 13 जनवरी को सुनवाई करेगा।
अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा ने जनहित याचिका में बिहार सरकार के उप सचिव द्वारा राज्य में जातिगत जनगणना कराने के लिए जारी अधिसूचना को रद्द करने और अधिकारियों को इस पर आगे बढऩे से रोकने की मांग की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि छह जून 2022 को जारी अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, जिसमें विधि के समक्ष समानता और कानून के समान सरंक्षण का प्रावधान है। याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिसूचना गैर कानूनी, मनमानी, अतार्किक और असंवैधानिक है। नालंदा निवासी अखिलेश कुमार ने अपनी याचिका में कहा है कि अगर जाति आधारित सर्वेक्षण का घोषित उद्देश्य उत्पीडऩ की शिकार जातियों को समायोजित करना है तो देश और जाति आधारित भेद करना तर्कहीन और अनुचित है। इनमें से कोई भी भेद कानून में प्रकट किए गए उद्देश्य  के अनुरूप नहीं है।

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