स्वच्छता के दावे की हकीकत

sanjay sharma

सवाल यह है कि कोरोना काल में भी सरकारी तंत्र लोगों की सेहत को लेकर लापरवाह क्यों है? साफ-सफाई और कूड़ा उठान की समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है? जलभराव की समस्या का समाधान क्यों नहीं हो रहा है? आखिर नगर निगम क्या कर रहा है? सरकार के तमाम आदेश जमीन पर क्यों नहीं दिखाई पड़ रहे हैं?

बारिश के मौसम में शहर में फैली गंदगी और जलभराव जनता की सेहत पर भारी पड़ सकती है। कोरोना संक्रमण के साथ मौसमी बीमारियों का खतरा भी मंडराने लगा है। अस्पतालों में डेंगू, मलेरिया और डायरिया के मरीज पहुंचने लगे हैं। बावजूद इसके प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्वच्छता अभियान का असर नहीं दिख रहा है। सडक़ से लेकर गलियों तक में गंदगी का साम्राज्य है। सवाल यह है कि कोरोना काल में भी सरकारी तंत्र लोगों की सेहत को लेकर लापरवाह क्यों है? साफ-सफाई और कूड़ा उठान की समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है? जलभराव की समस्या का समाधान क्यों नहीं हो रहा है? आखिर नगर निगम क्या कर रहा है? सरकार के तमाम आदेश जमीन पर क्यों नहीं दिखाई पड़ रहे हैं? शहर को चमकाने के लिए जारी भारी भरकम बजट कहां खर्च हो रहा है? नागरिकों से किस बात का टैक्स लिया जाता है? क्या लोगों की सेहत से खिलवाड़ करने की छूट दी जा सकती है?
बारिश ने एक बार फिर राजधानी में स्वच्छता के दावों की कलई खोल दी है। जगह-जगह जलभराव और गंदगी बिखरी पड़ी है। डोर-टू-डोर कूड़ा उठान की व्यवस्था नदारद है। मच्छरजनित रोगों से बचाव
के लिए जरूरी फॉगिंग तक नहीं कराई जा रही है। एंटी लार्वा दवा का छिडक़ाव नहीं हो रहा है। लिहाजा डेंगू, मलेरिया और डायरिया का खतरा बढ़ गया है। कोरोना के दौर में इन रोगों का बढऩा नई मुसीबत बन सकती है। साफ-सफाई के मामले में पुराने शहर की हालत और भी बदतर है। कई इलाकों में नाले चोक पड़े हैं। इसके कारण पानी की निकासी बाधित हो रही है। इसके चलते गंदा पानी सडक़ों और गलियों में बह रहा है। यह संक्रमण को न्योता दे रहा है। रही सही कसर शहर में अवैध रूप से फल-फूल रही अवैध डेयरियों ने निकाल दी हैं। ये डेयरियां नालियों और नालों में गंदगी बहा रही हैं। इसके कारण ये जाम हो चुके हैं। शहर को चमकाने की जिम्मेदारी नगर निगम की है। इसके लिए हर साल भारी भरकम बजट जारी किया जाता है। साफ-सफाई के लिए कर्मचारियों की पूरी फौज है लेकिन हकीकत में सारा सफाई अभियान कागजों तक सिमट चुका है। कुछ पॉश इलाकों को छोड़ दें तो अधिकांश क्षेत्रों में कभी-कभी ही सफाई कर्मी दिखाई पड़ते हैं। सडक़ों के किनारे कूड़ेदान से कूड़ा उठान तक नहीं किया जाता है। जाहिर है ये स्थितियां बेहद चिंताजनक हैं। कोरोना काल में यदि मौसमी बीमारियों का प्रकोप बढ़ा तो स्थितियां बेकाबू हो जाएंगी। लोगों को इलाज मिलना मुश्किल हो जाएगा। यदि सरकार इन स्थितियों से जनता को बचाना चाहती है तो उसे जमीन पर सफाई अभियान को उतारना होगा।

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