मेरी कोरोना डायरी… तीसरा दिन जिंदगी की लौ जल ही जाती है कहीं न कहीं से

4pm news network

अबकी सावन में शरारत यह मेरे साथ हुई/ मेरा घर छोडक़र सारे शहर में बरसात हुई…। बबिता का फोन आया कि यहां इतनी बरसात हो रही है, जितनी कई महीनों से नहीं हुई। हर तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा है। मन धक्क से हुआ। बरसात मेरी बहुत बड़ी कमजोरी है। बरसात को देखना, बरसात में नहाना मुझे बहुत पसंद है। अस्पताल के कमरे के बाहर झांक कर देखा दूर-दूर तक कहीं बरसात के निशान नहीं। सामने की मुंडेर पर दो चिडिय़ा खेल रही थीं, बहुत देर तक देखता रहा। सुबह से तबीयत बिगडऩे लगी है। बुखार बार-बार 102 तक जा रहा है। खांसी तेज हो गयी है। रात से दिमाग में तरह-तरह के ख्याल चल रहे हैं, न रहने पर क्या होगा। सबसे अच्छी बात यह कि दुनिया में कोई यकीं नहीं करेगा पर मुझे जिंदगी में कोई रुचि नहीं। मृत्यु मुझे हमेशा जिंदगी से ज्यादा पसंद है। वो एक अलौकिक लौ जलाती नजर आती है। मैं डिप्रेशन में नहीं हूं न ही अभी ऐसा हुआ हूं। एक दिन विवेक को बता रहा था तभी उसने कहा, यही कारण है आपको किसी से डर नहीं लगता।
लंग्स में इंफेक्ïशन के बाद एक्स-रे मशीन मेरे कमरे में लाई गयी। रिपोर्ट खुश करने वाली नहीं थी। अलबत्ता ऑक्सीजन लेवल सही था, 95 के आसपास। वीपी भी लगभग सही और शुगर मामूली बढ़ी हुई। दोस्तों के फोन का सिलसिला जारी रहा। आगरा से अनु भाई की बेटी अपने कुत्ते की हरकतें वीडियो कॉल पर दिखाती रही। जब मन नहीं लगा तो अपनी सबसे अच्छी पड़ोसन मृदुल भाभी को फोन लगा लिया और वीडियो कॉल पर उनके पति की खिंचाई दोनों ने मिलकर शुरू की। लगा, यह मेरी सबसे बड़ी पूंजी है मेरे साथ। जब जीवन में निराशा हो तो तभी कहीं न कहीं से आशा की किरण दिख जाती है। मेरी नर्स है राजदा। मुस्लिम है शादी हिंदू युवक से की है और आठ साल की प्यारी बेटी है उसकी। आठ घंटे तक पीपीई किट पहने रहना भी कम यातना नहीं है। न पानी पी सकते न दैनिक क्रिया कर सकते। कह रही है, सर बहुत डर लगता है जब यहां से जाते हैं तो छोटी बच्ची के पास जाने की हिम्मत नहीं होती पर यहां आते हैं तो मरीजों को देखकर अपना डर कम लगने लगता है। लगता है ईश्वर ने इनकी जिम्मेदारी ही सौंपी है। वह अपनी बेटी की फोटो चहकती हुई दिखाती रही तो वन्या की बहुत याद आई। सिद्घार्थ और वन्या से वीडियो कॉल पर कई बार बात हो जाती है।
राजदा के जाने के बाद मैंने बाहर जाकर देखा एक चिडिय़ा उड़ गयी थी। दूसरी दाना चुग रही थी। लगा, जीवन भी तो यही होता है। अचानक एक निकल लेता है पर जिंदगी रूकती नहीं। ओशो कहते हंै मौत एक उत्सव है। इस एकाकी जीवन में यह उत्सव मुझे बहुत अच्छी तरह समझ आ गया। कल सोचा है कि बबिता को कुछ एकाउंट समझा दूंगा। मैंने जिंदगी में कुछ काम अच्छे किए हैं, उसमें एक यह भी है बहुत बड़ी राशि का बीमा करा लिया है। न रहने पर आर्थिक रूप से बच्चे परेशान न हो यह ख्याल रहता है। पर डर लगता है बबिता को आर्थिक बातों में कोई रूचि नहीं, बताते ही नाराज होने लगेगी। इस समय रात के दो बज रहे हैं। नींद नहीं आ रही है। बचपन से अब तक की न जाने कितनी कहानियां सामने चल रही हंै। बुखार अभी भी 102 है पर मजा आ रहा है। जिंदगी में ऐसी परेशानी भी आनी चाहिए तो जिंदगी की वैल्यू लगे पर मेरे जैसे मस्तमौला के लिए यह इम्तिहान छोटा है। बच गया तो मस्ती की पाठशाला और तेज करूंगा। गोवा जाऊंगा। समुद्र किनारे बीयर पीकर लेटना और समुद्र में स्कूटर चलाना ड्ïयू है। चलिए अब सोने की कोशिश करता हूं। सुबह सात बजे से फिर वही वीपी, शुगर और ऑक्सीजन।

मृत्यु मुझे हमेशा जिंदगी से ज्यादा पसंद है। वो एक अलौकिक लौ जलाती नजर आती है। मैं डिप्रेशन में नहीं हूं न ही अभी ऐसा हुआ हूं।

कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मैं इरा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हूं। बहुत सारे साथियों ने फोन करके कहा कि लिखूं वहां से कि कैसा महसूस कर रहा हूं तो रोज का संस्मरण लिखता रहूंगा। – संजय शर्मा

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