महामारी में कम होती पाबंदियों के मायने

sanjay sharma

सवाल यह है कि जब देश में संक्रमण तेजी से फैल रहा है उस समय सरकार पाबंदियों को क्यों हटा रही है? क्या मेट्रो की आवाजाही से संक्रमण का खतरा और नहीं बढ़ जाएगा? क्या आर्थिक गतिविधियां लोगों की सेहत पर भारी नहीं पड़ेंगी? क्या अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार जनता की सेहत से खिलवाड़ नहीं कर रही है? क्या यह देश में सामुदायिक संक्रमण को बढ़ावा नहीं देगी?

कोरोना ने भारत समेत पूरी दुनिया में कोहराम मचा रखा है। अकेले भारत में वायरस ने 38 लाख से अधिक लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। वहीं इसकी चपेट में आकर अब तक 67 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। देश में संक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसके बावजूद सरकार ने पाबंदियों को और भी कम कर दिया है। अनलॉक-4 में शिक्षा समेत कुछ क्षेत्रों की गतिविधियों को छोडक़र अधिकांश को खोल दिया गया है। पाबंदियां कोरोना गाइडलाइंस के पालन की शर्त के साथ हटाई गई हैं। मेट्रो को भी चरणबद्ध तरीके से सात सितंबर से खोलने का ऐलान किया गया है। सवाल यह है कि जब देश में संक्रमण तेजी से फैल रहा है उस समय सरकार पाबंदियों को क्यों हटा रही है? क्या मेट्रो की आवाजाही से संक्रमण का खतरा और नहीं बढ़ जाएगा? क्या आर्थिक गतिविधियां लोगों की सेहत पर भारी नहीं पड़ेंगी? क्या अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार जनता की सेहत से खिलवाड़ नहीं कर रही है? क्या यह देश में सामुदायिक संक्रमण को बढ़ावा नहीं देगी?
अनलॉक के साथ पूरे देश में कोरोना की रफ्तार तेजी से बढ़ी है। रोजाना औसतन 65 से 70 हजार नए संक्रमण के केस सामने आ रहे हैं। संक्रमण बढऩे की वजह लोगों द्वारा कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं करना है। लोग सार्वजनिक स्थानों पर मास्क लगाने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और सेनेटाइजर के प्रयोग में लापरवाही बरत रहे हैं। वहीं सरकार आर्थिक व्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटी है। सच यह है कि लंबे समय तक किसी भी देश में लॉकडाउन नहीं लगाया जा सकता है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में यह संभव नहीं है। दरअसल सरकार पाबंदियों को इसलिए भी खत्म कर रही है क्योंकि कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा यहां बेहद कम है। यह दो फीसदी से भी कम है। इसके अलावा यहां रिकवरी दर भी तेजी से बढ़ी है। फिलहाल ठीक होने वालों का आंकड़ा 76 फीसदी से अधिक है। साथ ही यहां हल्के या बिना लक्षण वाले मरीज अधिक हैं। गंभीर रोगियों का प्रतिशत काफी कम है। वहीं कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश राज्यों में केसों की संख्या बेहद धीमी गति से बढ़ रही है। इसके अलावा यहां कोरोना के दूसरे वेब के भी कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। बावजूद इसके इन पाबंदियों के हटने के बाद यदि संक्रमण में और इजाफा हुआ तो सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएगी। इससे देश में सामुदायिक संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। जाहिर है सरकार को इसकी रोकथाम के लिए गाइडलाइंस का कड़ाई से पालन कराना सुनिश्चित करना होगा। साथ ही चिकित्सा व्यवस्था को भी दुरुस्त करना होगा।

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