भारतीय संस्कृति में ’गुरु तत्व’

डा.ॅ विवेकानंद तिवारी
भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत ऊंचा स्थान है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के समान समझकर सम्मान करने की पद्धति पुरातन है। आचार्य देवो भव: का स्पष्ट अनुदेश भारत की पुनीत परंपरा है और वेद आदि ग्रंथों का अनुपम आदेश है। परमात्मा की ओर संकेत करने वाले गुरु ही होते हैं। गुरु को प्रेरक, प्रथम आभास देने वाला, सच्ची लौ जगाने वाला और कुशल आखेटक कहा गया है, जो अपने शिष्य को उपदेश की वाणों से बिंध कर उसमें प्रेम की पीर संचरित कर देता है। गुरु एक प्रकार का बांध है, जो परमात्मा और संसार के बीच तथा शिष्य और भगवान के बीच सेतु का काम करते हैं। प्रभु इच्छा और अपने पूर्व जन्म के संस्कार के कारण सद्ïगुरु हमारे जीवन में प्रवेश करते है तथा दिव्य जीवन के पथ पर प्रत्येक कदम पर हमे निर्देश देते हैं। आध्यात्मिक विद्या का उपदेश देने और ईश्वर का साक्षात्कार करा देने वाले गुरु को अपने यहां परमब्रह्म कहा गया है। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता हैअर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता है।
अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नम: संस्कृत में ऐसे व्यक्ति के लिए पुण्य श्लोक शब्द प्रयोग किया जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्ïगुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। ऐसे गुरु को अपने यहा साक्षात् परम ब्रह्म कहा गया है गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। बिनु गुरु होय न ज्ञान। भगवान राम गुरु सेवा के आदर्श है महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है इन गुरुओं की छत्रछाया में से निकलने वाले कपिल, कणाद, गौतम, पाणिनी आदि अपने विद्या-वैभव के लिए आज भी संसार में प्रसिद्ध हैं। गुरुओं के शांत पवित्र आश्रम में बैठकर अध्ययन करने वाले शिष्यों की बुद्धि भी तद्नुकूल उज्ज्वल हुआ करती थी। सादा जीवन, उच्च विचार गुरुजनों का मूल मंत्र था। तप और त्याग ही उनका पवित्र ध्येय था। लोकहित के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देना और शिक्षा ही उनका जीवन आदर्श हुआ करता था। कबीर अपनी गुरु की प्रशंसा करते हुए नहीं अघाते। काशी में हम प्रकट भये हैं रामानन्द चेताये जैसी उक्ति भी कबीर के गुरु प्रशंसा का प्रमाण है। कबीर तो गुरु को ईश्वर से भी बड़ा मानते हैं। गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काको लागूं पांय? बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिए बताय। गुरु के प्रति अविचल आस्था ही वह द्वार है जिससे ज्ञान का हस्तांतरण संभव है। गुरु और सद्ïगुरु में अंतर होता है। संसार रूपी रोग के लिए सद्ïगुरु ही वैद्य है।
आज वक्त बदल गया है। आजकल विद्यार्थियों को व्यावहारिक शिक्षा देने वाले शिक्षक और लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले को गुरु कहा जाता है। शिक्षक कई हो सकते हैं लेकिन गुरु एक ही होते है। भारतीय संस्कृति मे गुरु शिष्य संबंध उनके त्याग समर्पण, सेवा के अनेकों उदाहरण है जहां दोनो ने उच्च आदर्श उपस्थित किया है। मनु महाराज ने विद्यार्थियों (शिष्यों) को धर्म का उपदेश करते समय माता-पिता एवं गुरु की महिमा गाई है । मनु ने अनेक प्रकार से गुरु को महान बताते हुए कहा है-गुरु शुत्रूयात्वेवं ब्राह्मलोकं समश्नुते ।
अर्थात गुरु की सेवा द्वारा ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। यह इसी के तुल्य है कि ‘आचार्य देवो भव:’ अर्थात आचार्य को देवता मानो अपने गुरु को देवता के सामान मानने वाले आरुणि अथवा उद्दालक ने अपनी गुरु-भक्ति से गुरु धौम्य को भी अमर बना दिया। हमारे धर्मग्रंथों में गुरु शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा गया है कि जो शिष्य के कानों में ज्ञानरूपी अमृत का सिंचन करे और धर्म का रहस्यों उद्ïघाटन करे। हमारे धर्मग्रंथों में गुरु शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा गया है कि जो शिष्य के कानों में ज्ञानरूपी अमृत का सिंचन करे और धर्म का रहस्यों उद्ïघाटन करे, वही गुरु है। यह जरूरी नहीं है कि हम किसी व्यक्ति
को ही अपना गुरु बनाएं। यह सच है कि आज हम जिस सामाजिक और आर्थिक परिवेश में सांस ले रहे हैं। वहां इन पुरानी व्यवस्थाओं की चर्चा निरर्थक है, परंतु इनके सार्थक और शाश्वत अंशों को तो हम ग्रहण कर ही सकते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=8dBKeiF3bhU

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button