बाढ़ के सामने पस्त होता सिस्टम

sajnay sharma

सवाल यह है कि आजादी के कई दशकों बाद भी बाढ़ का पुख्ता समाधान क्यों नहीं निकाला जा सका? हर बार बाढ़ से लाखों लोगों को अपना घर-बार क्यों छोडऩा पड़ता है? क्यों नदियां सबकुछ अपने साथ बहा ले जाती हैं?ï क्यों जन-धन की हानि को रोक पाने में सिस्टम नाकाम साबित हो रहा है? क्यों हर साल नदियां विकराल रूप धारण कर लेती हैं?

मानसून के साथ ही देश में बाढ़ की विभिषिका फिर से दिखने लगी है। पूर्वोत्तर के राज्यों समेत बिहार में भयानक बाढ़ का मंजर है। आने वाले दिनों में अन्य राज्य भी बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं। अकेले असम में सत्तर लाख लोग बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। घर ढह चुके हैं और लोग नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। सवाल यह है कि आजादी के कई दशकों बाद भी बाढ़ का पुख्ता समाधान क्यों नहीं निकाला जा सका? हर बार बाढ़ से लाखों लोगों को अपना घर-बार क्यों छोडऩा पड़ता है? क्यों नदियां सबकुछ अपने साथ बहा ले जाती हैं?ï क्यों जन-धन की हानि को रोक पाने में सिस्टम नाकाम साबित हो रहा है? क्यों हर साल नदियां विकराल रूप धारण कर लेती हैं? क्या दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव के कारण बाढ़ का समाधान आज तक नहीं खोजा जा सका है? क्या बेतरतीब विकास इस तबाही की बड़ी वजह है? क्या लोगों को राहत सामग्री बांटना भर राज्य सरकारों का काम रह गया है? क्या बाढ़ के शाप से हिंदुस्तान को कभी मुक्ति नहीं मिल सकेगी?
भारत में हर साल मानसून में बाढ़ अपने साथ तबाही लाती है। नदियां अपनी सीमाओं को पारकर गांव और शहरों में घुस जाती हैं और जन-धन को भयानक हानि पहुंचाती हैं। हैरानी की बात यह है कि आजादी के दशकों बाद भी सरकारें आज तक इस समस्या का हल नहीं निकाल सकी है। हकीकत यह है कि बेतरतीब विकास और औद्योगिककरण ने नदियों को कभी केंद्र में रखा ही नहीं। नदियों के किनारे खड़े पेड़ों को काट डाला गया। गांव और शहरों के पोखरों और तालाबों को पाटकर इमारतें खड़ी कर ली गईं। कुएं बीतें दिनों की बात हो गए। लिहाजा बारिश का सारा पानी सीधा नदियों में गिरने लगा। नदी के किनारों तक लोगों ने अतिक्रमण कर लिया। बांध का पानी भी बारिश के दौरान इन नदियों में छोड़ा जाने लगा। लिहाजा स्थितियां विकराल हो गईं। नदियां तेजी से उफनाने लगीं और शहरों और गांवों को अपनी जद में लेने लगी। कुछ शहरों को छोड़ दिया जाए तो बिना किसी योजना के इनको विकसित किया गया। इसके कारण पानी का प्रबंधन उचित तरीके से नहीं किया गया। बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई गई। लिहाजा स्थितियां लगातार बद से बदतर होती चली गई। आज बाढ़ एक भयावह त्रासदी के रूप में हमारे सामने हर साल खड़ी हो जाती है और सरकारें फौरी राहत देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती हैं। यदि सरकार बाढ़ को नियंत्रित करना चाहती है तो उसे न केवल दृढ़ इच्छा शक्ति दिखानी होगी बल्कि गांव व शहरों में पोखरों और तालाबों को फिर से आबाद करना होगा।

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