जीवन को पाना है तो मृत्यु से प्यार करना सीखो

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दस बाई दस का कमरा होगा यह। जहां रहते हुए मुझे 24 घंटे से ज्यादा हो चुके हैं। इरा मेडिकल कॉलेज का यह कमरा सालों बाद मेरे एकांकी जीवन का गवाह बना। या यूं कहूं पहली बार। अकेले रहने का अनुभव छात्र राजनीति में डाला था और एक बार निजी जिंदगी में तनाव और डिप्रेशन के कारण कई दिनों तक घर से नहीं निकला था पर इस बार कारण मजबूरी के थे। कोरोना ने मेरी तरह करोड़ों लोगों की जिंदगी को ऐसे ही एकांकी कर दिया है। लॉकडाउन लगने के पहले दिन से लेकर पैतालिस दिनों तक लगातार रोज कई घंटे अपनी गाड़ी में खाना भरकर लोगों को बांटता रहा। करीबी लोग कहते रहे… बाहर बहुत खतरा है मगर मुझे ईश्वर की सत्ता पर कुछ ज्यादा ही यकीन है, तो मैं कहता यह बंदे भी ईश्वर के ही बंदे हैं। लॉकडाउन खुला और मेरी लापरवाही ने मुझे अस्पताल के इस कमरे में पहुंचा दिया।
घर पर था तो तीन चार दिन से बुखार, खांसी और शरीर में बहुत दर्द था। दो दिन खुद को अपने ऊपर के कमरे में अलग किया। चौथे दिन सिविल अस्पताल में जांच करायी और पॉजिटिव होने के बाद काफी पड़ताल के बाद इरा जाने का फैसला किया। मेरी समस्या यह है कि मैं हर पल मजे में रहता हूं। शायद ही किसी ने मुझे अवसाद के पलों में देखा हो। घर पर रिपोर्ट का पता चलते ही चिल्लाया वाह मैडम अब तुमसे दस दिनों की छुट्टïी मिली। बेटे सिद्घार्थ के चेहरे की रंगत उड़ी दिखी तो मेरी बेटी वन्या मायूस। कई सालों से घर पर रह रही परिवार की तरह मोनी पीछे पड़ गयी प्लीज अंकल मत जाओ। मैं यहां पर बढिय़ा खाना खिला दूंगी पर मुझे शुगर की समस्या थी और वन्या छोटी है और कमरे में आ जाती है तो मैंने अस्पताल जाने का फैसला बनाए रखा। वो पल मुश्किल था जब बबिता मुझे लिफ्ट तक छोडऩे आयी और आंखों में बहुत आंसू दिखे। यह डर शायद हर परिवार के लोगों को होता होगा कि जाने वाले की वापसी होगी या नहीं। मैंने आंसू देखकर ठहाका लगाया और कहा मेरे बीमा का पैसा इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला। मोनी ने हम दोनों के फोटो खींचे।
संग्राम पिछले आठ सालों से मेरी गाड़ी चला रहा है कह रहा मैं छोडऩे चलूंगा मैंने मना किया। अटैची में पूरा पिकनिक का सामान, जिसमें ओशो की भी चार किताबें। रात लगभग दस बजे इरा पहुंचा। खुद अटैची लेकर गेट तक गया। गाड़ी साइड में खड़ी की। गार्ड से कहा एडमिट होना है। उसने पूछा किसको। मैंने कहा मुझे… ऐसा लगा जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का करंट लगा हो। पीछे हटकर बोला- गजब है आप खुद गाड़ी चलाते हुए आ गए। यह सारा रोमांच तब उडऩ छू हो जाता है जब आप पहले चरण में हकीकत का सामना करते हैं। एक बेसमेंट में ले जाया गया। पहले बांये हाथ की कोहनी के पास की नस फिर दांये हाथ से खून निकालने की नाकाम कोशिश के बाद मेरी हथेली की नस के पीछे से खून निकाला गया। चेस्ट का एक्सरे हुआ। भयंकर तरह की पीपीई किट पहने लोगों के बीच मेरी तरह एक और बुजुर्ग हॉफते हुए आए। देखकर लग रहा था कि कैसे बचेगा इनका जीवन। डॉक्टरों की टीम उन्हें बचाने में जुट गयी। रात ग्यारह बजे अपने इस प्राइवेट रूम में पहुंचा। एक बजे तक घर से ही फोन आते रहे। बहुत कड़ा गद्ïदा, पतला तकिया पर कमरे में टीवी और एसी था। नर्स रात के लिए विटामिन सी और डी की गोली दे गयी। रात तीन बजे तक नींद नहीं आयी और मैं ओशो की मृत्यु एक उत्सव है को समझता रहा। बाकी कल की कहानी कल।

घर पर रिपोर्ट का पता चलते ही चिल्लाया वाह मैडम अब तुमसे दस दिनों की छुट्टïी मिली। बेटे सिद्घार्थ के चेहरे की रंगत उड़ी दिखी तो मेरी बेटी वन्या मायूस।

मेरी कोरोना डायरी… पहला दिन

कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मैं इरा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हूं। बहुत सारे साथियों ने फोन करके कहा कि लिखूं वहां से कि कैसा महसूस कर रहा हूं तो रोज का संस्मरण लिखता रहूंगा। – संजय शर्मा

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