आखिर क्यों परेशान हैं विधायक के पत्र से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, जानिए क्या है वह वजह

नई दिल्ली। चुनाव से पहले पूरी सरकार बदलने की भारतीय जनता पार्टी की रणनीति कारगर साबित हो रही है। पहले पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह प्रदेश गुजरात में भाजपा ने हिट एंड रन का यह फॉम्र्युला आजमाया और एक के बाद एक दोनों जगहों पर उसे अपार सफलता मिली। कम-से-कम उत्तराखंड के लिए तो यह भी कहा जा सकता है कि वहां हाथ से फिसलती हुई सत्ता वापस मिल गई। बड़ी बात है कि हिमाचल प्रदेश में यही फॉम्र्युला नहीं अपनाया गया और परिणाम निराशाजनक आए। इसलिए, अब बीजेपी शासित एक अन्य चुनावी राज्य मध्य प्रदेश की सरकार में भी बड़े बदलाव की मांग उठ गई है। एमपी के मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को चि_ी लिखकर कहा है कि चूंकि अगले वर्ष प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है, इसलिए जरूरी है कि सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए सरकार में आमूलचूल परिवर्तन किए जाएं। विधायक नारायण त्रिपाठी की यह चि_ी मीडिया में लीक हो गई है। इसके साथ ही, यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ माहौल बन रहा है? अगर इसका जवाब हां है तो बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व मध्य प्रदेश में भी उत्तराखंड और गुजरात का प्रयोग दुहराए, इसकी कितनी संभावना है?
दरअसल, संभावनाओं के खेल में किसी बात पर दावेदारी नहीं की जा सकती है। ना ही कथित संभावना को सिरे से खारिज किया जा सकता है और ना ही ताल ठोंककर यह भी कहा जा सकता है कि यह होकर ही रहेगा। हां, परिस्थितियों के आकलन के आधार पर हां या ना के बीच पलड़ा किस तरफ झुका है, इसका अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है।
बीजेपी ने कार्यकाल के बीच में ही सरकार बदलने की कवायद उत्तराखंड से शुरू की थी। उत्तराखंड में इसी वर्ष फरवरी में चुनाव हुए थे। इससे पहले दो बार मुख्यमंत्री बदले गए। 2017 में जब उत्तराखंड में बीजेपी की जीत हुई तो त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्र बने। चार साल बाद 2021 के मार्च महीने में त्रिवेंद्र सिंह रावत से मुख्यमंत्री का पद छीनकर तीरथ सिंह रावत को दे दिया गया, लेकिन चार महीने से भी कम वक्त में उनकी भी विदाई हो गई और पुष्कर धामी नए मुख्यमंत्री बने। बीजेपी ने धामी के चेहरे पर ही 2022 का चुनाव लड़ा और जब 10 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम आए तो भापजा 70 में से 47 सीटें यानी बहुमत के आंकड़े से 12 सीटें ज्यादा लेकर सत्ता में लौट गई। बीजेपी को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में 44.3 प्रतिशत वोट हासिल हुए।
उधर, गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणाम इसी 8 दिसंबर को आए और भाजपा ने इतिहास रच दिया। पार्टी ने 156 सीटें और 52.5 प्रतिशत वोट पाकर गुजारत विधानसभा चुनावों की सबसे बड़ी जीत की, वो भी 27 वर्षों के लगातार शासन के बाद। भाजपा ने गुजरात में भी चुनाव से एक वर्ष पहले 2021 के सितंबर में पूरी सरकार बदल दी थी। विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया और उन्हें बिल्कुल नई कैबिनेट सौंपी गई। इसका असर यह हुआ कि बीजेपी ने इस बार विधानसभा चुनाव में प्रदेश में अधिकतम 149 सीटों पर विजय का कांग्रेस का रिकॉर्ड तोड़ दिया।
गुजरात के साथ हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के भी परिणाम आए। भाजपा उम्मीद लगाए बैठी थी कि वह हिमाचल प्रदेश में चली आ रही लंबी परंपरा को तोडक़र दोबारा सत्ता में आ जाएगी। लेकिन 8 दिसंबर को परिणाम आए तो भाजपा की आस धूल-धुसरित हो गई। 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में भाजपा 25 सीटों तक सिमट गई और कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर सत्ता पलट दी। इसके साथ ही हर पांच वर्ष में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की परंपरा कायम रह गई। यह अलग बात है कि बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले सिर्फ 0.90 प्रतिशत कम वोट मिले। कांग्रेस को 43.9 प्रतिशत वोट मिले तो बीजेपी को पूरे 43 प्रतिशत। इसीलिए कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में भी पड़ोसी प्रांत उत्तराखंड वाली रणनीति अपनाया होता तो यहां भी उसकी सत्ता बच जाती। इस दावे का आधार पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश में हुए उप-चुनाव में बीजेपी को चारों सीटों पर मिली हार है। सवाल उठ रहे हैं कि भाजपा हिमाचल प्रदेश में उप-चुनाव के परिणाम से सत्ता विरोधी लहर को भांपने से कैसे चूक गई? यह सवाल इसलिए भी गहरा है क्योंकि खुद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश से ही हैं। तो क्या नड्डा अपने ही गृह प्रदेश की सरकार और वहां के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बारे में सही-सही फीडबैक नहीं जुटा पाए थे?
ध्यान रहे कि मध्य प्रदेश के अलावा अगले वर्ष दो अन्य बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक और त्रिपुरा चुनावों में जाने वाले हैं। भाजपा इन दोनों राज्यों में पूरी सरकार तो नहीं, लेकिन मुख्यमंत्री बदल चुकी है। कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की जगह बासवराज बोम्मई को जुलाई 2021 में कर्नाटक की सत्ता सौंप दी गई। वहीं, त्रिपुरा में इसी वर्ष मई महीने में बिप्लब देब से मुख्यमंत्री का ताज छीनकर डॉ. माणिक साहा के सर पर सजा दिया गया। सवाल है कि आखिर किस राज्य में मुख्यमंत्री बदलना है, किस राज्य में मुख्यमंत्री के साथ पूरी कैबिनेट और किस राज्य में कोई छेड़छाड़ नहीं करनी है, बीजेपी के पास इसका कौन सा पैमाना है? राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीजेपी ने प्रदेश सरकारों की चुनावी क्षमता परखने के तीन बड़े आधार तय कर रखे हैं। इनमें पहला है- प्रदेश में सरकारी योजनाओं का जमीन तक पहुंचने का अनुपात, पार्टी संगठन के साथ संबंधित प्रदेश सरकार की तालमेल का स्तर और जनता में मुख्यमंत्री की लोकप्रियता।
बहरहाल, मध्यप्रदेश के विधायक नारायण त्रिपाठी ने 11 दिसंबर को नड्डा को लिखे पत्र में लिखा है, ‘गुजरात में पार्टी की शानदार और ऐतिहासिक विजय के लिए आपको शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए विनम्र निवेदन है कि मध्यप्रदेश में हमारे जैसा छोटा कार्यकर्ता चाहता है कि राज्य में दोबारा गुजरात की तर्ज पर सरकार बने।’ इसमें आगे कहा गया है, ‘इसके लिए कार्यकर्ताओं की मंशा के अनुरूप यहां भी सत्ता एवं संगठन में पूरी तरह बदलाव किया जाय ताकि प्रदेश में नए युग की शुरुआत हो।’ आगे कहा गया है, ‘पुन: निवेदन है कि मध्यप्रदेश में सत्ता एवं संगठन में पूरी तरह बदलाव के मेरे जैसे तमाम कार्यकर्ताओं के आकलन एवं मंशा पर विचार करने की कृपा करेंगे ताकि यहां फिर से भाजपा की सरकार बन सके और विकास एवं जनकल्याण की गति निर्बाध रूप से जारी रह सके।’

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