वह दिन भी आएगा जब कोरोना नहीं रहेगा

sanjay sharma

जो महासंकट हमारे सामने खड़ा है उसका समाधान हमें ही खोजना होगा। उसके लिए धैर्य, संयम एवं विवेक का प्रदर्शन करना होगा।
उम्मीद थी कि अनलॉक 1.0 में जितनी छूटें मिली थीं, उसके अधिक छूटें इस दूसरे अनलॉक में भी मिलेंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

कोरोना महामारी ने जीवन के मायने ही बदल दिए हैं। संकट अभी भी चहूं ओर है। भले सरकार की जागरूकता एवं योजनाओं ने जनजीवन में आशा का संचार किया हो, लेकिन अभी लंबा संघर्ष करना होगा। वर्तमान में जो कोरोना महासंकट हमारे सामने खड़ा है उसका समाधान हमें ही खोजना होगा। उसके लिए धैर्य, संयम एवं विवेक का प्रदर्शन करना होगा। पहले फेज में तीन लॉकडाउन थे, जिसमें नागरिकों ने साहस का परिचय दिया। इसके बाद अब देश लॉकडाउन के नए फेज में है, जिसे अनलॉक 2.0 कहा गया है। लॉकडाउन के चलते घरों में बंद लोग ऊब चुके हैं। उनके आर्थिक संसाधन चरचरा रहे हैं। बंदिशों को लेकर उनमें छटपटाहट है। उन्हें यह उम्मीद थी कि अनलॉक 1.0 में जितनी छूटें उन्हें मिली थीं, उसके अधिक छूटें इस दूसरे अनलॉक में भी मिलेंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि अभी कोरोना महासंकट के अधिक फैलने की स्थितियां कायम हैं।
भारतीय जीवन में कोरोना महामारी इतनी जल्दी फैल रही है कि उसे थाम कर रोक पाना किसी एक व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। सामूहिक जागृति लानी होगी। यह सबसे कठिन है पर यह सबसे आवश्यक भी है। क्योंकि अभी कोरोना के बेकाबू होकर घर-घर पहुंच जाने का खतरा बढऩे की संभावनाएं अधिक हैं। तथ्यों की बात करें तो हालात पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण एवं जटिल हुए हैं। अभी अंधेरा घना है। भले ही कोरोना पीडि़तों की रोग मुक्ति का प्रतिशत लगभग 60 हो गया है, लेकिन इसका संक्रमण बढ़ ही रहा है। भारत ने 6 लाख के आंकड़े को पार कर लिया है। मौत के आंकड़े भी डरा रहे हैं। जान बचाने के प्रयास जारी हैं और इसमें कामयाबी भी मिल रही है। विडंबना यह है कि अभी तक कोरोना की कोई दवा भी सामने नहीं आई है। बिना किसी अचूक दवा के बीमारी से लड़ाई चल रही है। इम्युनिटी यानी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के व्यापक प्रयत्न हो रहे हैं, जिनमें आयुर्वेद की भी भूमिका काम कर रही है। हमें यह गहराई से समझना होगा कि कोरोना तेरी मेरी नहीं, यह सभी की समस्या है। कोरोना से जुड़ी स्थितियों को देखना आसान है, पर परिणामों की अनिश्चितता से गुजरना बहुत कष्टकारी है। भले ही हमें यह पता न हो कि आगे क्या होने वाला है, पर हमें यह स्वीकार करना होगा कि सब कुछ ठीक होगा। मन में यह भरोसा जगाना होगा कि हम चीजों को ठीक करने का रास्ता ढूंढ़ लेंगे, भले ही स्थितियां कैसी भी हों। हम कोरोना के कल के बारे में सब कुछ नहीं जान सकते, यह जानते हुए भी अनिश्चित कल की ओर बढऩे के लिए साहस, संयम एवं विवेक तो बटोरना ही होगा। क्योंकि ये कांटों की बाट नहीं है- यह तो मर्यादाओं की रेखाएं हैं। इसे जो भी लांघेगा, कोरोना का रावण उसे उठा ले जाएगा।

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