विधान परिषद में कांग्रेस का सफर समाप्त

  •  135 साल के इतिहास में पहली बार कोई सदस्य नहीं
  •  यूपी कोटे से राज्यसभा में कांग्रेस पहले ही हो चुकी मुक्त
  •  सपा के हाथों से निकल सकता है नेता प्रतिपक्ष का पद

दिव्यभान श्रीवास्तव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में दस सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया है। इसमें सपा के 6, बसपा के 3 और कांग्रेस के एक एमएलसी हैं। मगर आजादी के बाद पहली बार विधान परिषद में कांग्रेस शून्य हो गई है। यूपी विधान परिषद में अपने इकलौते सदस्य दीपक सिंह विधान परिषद से रिटायर हो गए हैं। ऐसे में उच्च सदन में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस जीरो हो गई है। 135 साल के इतिहास में यह पहला मौका है जब विधान परिषद पूरी तरह कांग्रेस विहीन हो गई है। वहीं विधानसभा में पिछले 37 सालों में यह पार्टी 269 से 2 पर जा पहुंची है। इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व ही नहीं होगा। कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे मोतीलाल नेहरू से शुरू हुआ ये सिलसिला उनकी पांचवीं पीढ़ी के समय में खत्म हो रहा है। यूपी कोटे से राज्यसभा में कांग्रेस पहले ही मुक्त हो चुकी है। इस तरह यूपी से न तो संसद के उच्च सदन में और न ही विधान परिषद में, कांग्रेस का कोई सदस्य होगा। इस बार हुए विधानसभा चुनाव में सदस्य संख्या के हिसाब से कांग्रेस सबसे निचले पायदान पर पहुंच गई है। उसके 2 विधायक जीते और 2.5 फीसदी से भी कम वोट मिले हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की शुरुआत 5 जनवरी 1887 को हुई थी। तब इसमें 9 सदस्य हुआ करते थे। 1909 में बनाए गए प्रावधानों के तहत सदस्य संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई, जिनमें गैर सरकारी सदस्यों की संख्या 26 रखी गई। इन सदस्यों में से 20 निर्वाचित और 6 मनोनीत होते थे। मोती लाल नेहरू ने 7 फरवरी 1909 को विधान परिषद की सदस्यता ली। उन्हें विधान परिषद में कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है। पांच जनवरी 1887 को प्रांत की पहली विधान परिषद गठित हुई थी और आठ जनवरी 1887 को थार्नाहिल मेमोरियल हाल इलाहाबाद में संयुक्त प्रांत की पहली बैठक हुई थी। तब से अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ जब विधान परिषद में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व न रहा हो। मगर अब बुधवार से प्रदेश विधान परिषद में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं रह गया। विधान परिषद के जो दस सदस्य छह जुलाई को रिटायर हो रहे हैं, उनमें छह सपा के, तीन बसपा के एक कांग्रेस व दो भाजपा के सदस्य हैं। मगर भाजपा के दो सदस्य फिर से निर्वाचित हुए हैं।

ये दस लोग हुए रिटायर
उत्तर प्रदेश विधान परिषद से कुल 10 सदस्य रिटायर हो गए। इनमें समाजवादी पार्टी के जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डॉ. कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, रामसुंदर निषाद और शतरुद्घ प्रकाश शामिल है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी के अतर सिंह राव, सुरेश कुमार कश्यप और दिनेश चंद्रा का कार्यकाल भी कल खत्म हो गया। साथ ही कांग्रेस के दीपक सिंह भी विधान परिषद सदस्य से रिटायर हो गए। जबकि भारतीय जनता पार्टी के दो सदस्य जिनका कार्यकाल खत्म हुआ था, उनको पहले ही विधान परिषद भेजा जा चुका है। इनमें उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और पंचायती राज्य मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह का नाम शामिल है।

छिन सकती है सपा से विपक्ष की कुर्सी
यूपी विधान परिषद में सपा से विपक्ष की कुर्सी भी छिन सकती है। सदन में भाजपा के सदस्यों की संख्या 66 है। जबकि सपा के 11 सदस्य हैं। सपा के सदस्यों की संख्या 6 जुलाई के बाद 10 फीसदी से कम होकर 9 फीसदी हो जाएगी। ऐसे में माना जा रहा है कि विधान परिषद में उसकी विपक्ष की कुर्सी छिन सकती है। हालांकि जानकारों का मानना है कि सभापति सपा को नेता प्रतिपक्ष चुनने के लिए कह सकते हैं। अगर सभापति, सपा से नेता चुनने के लिए कहेंगे, तभी विपक्ष की कुर्सी बच सकती है।

कांग्रेस ने जोर लगाया लेकिन नतीजा सिफर
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने यूपी की राजनीति में वापसी के लिए जोर नहीं लगाया। 2022 के चुनाव में तो पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने पूरी कमान अपने हाथ रखी। सड़क पर संघर्ष के जरिए पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश की। चुनावी घोषणा पत्र में आधी आबादी सहित हर वर्ग के लिए लोक लुभावन वादे किए लेकिन अंतत: नजीता सिफर रहा। पार्टी को सिर्फ दो सीटों पर संतोष करना पड़ा। यह यूपी की राजनीति में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है।

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