शर्मनाक : यह है यूपी का सच- पंद्रह लाख से भी अधिक बच्चे कुपोषित हैं इस राज्य में

  • कोरोना काल में पोषण माह के दौरान चिन्हित किए गए कुपोषित बच्चे
  • ड्राई राशन की योजना पर भी उठ रहे सवाल
रणविजय सिंह
लखनऊ। नजमा की दो साल की बेटी शबनम को अचानक बुखार आया। वह बेहोश हो गई। बेटी की हालत बिगड़ते देख नजमा उसे लेकर जिला अस्पताल पहुंची, जहां डॉक्टर ने बताया कि शबनम का वजन उसकी लंबाई के हिसाब से बहुत कम है, साथ ही उसमें खून की भी कमी है। ये लक्षण कुपोषण के हैं। शबनम को लखनऊ के बलरामपुर जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया है। लखनऊ के नरही की रहने वाली नजमा ने बताया कि उसे यकीन नहीं हो रहा कि उनकी बेटी कमजोर है। शबनम की तरह ही उत्तर प्रदेश में ऐसे तमाम बच्चे हैं जो कुपोषित हैं और उनके मां-बाप को इसकी जानकारी नहीं है। यही कारण है कि उन्हें सही वक्त पर सही इलाज नहीं मिल पाता है। प्रदेश में कुपोषण बड़ी समस्या है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के मुताबिक, बिहार के बाद यूपी देश का दूसरा ऐसा राज्य है जहां कुपोषण सबसे अधिक है। इसके बाद 2016 से 2018 के बीच हुए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में भी यह आंकड़े चिंताजनक रहे। पिछले साल सितंबर के महीने में मनाए गए पोषण माह के दौरान प्रदेश में कुपोषित बच्चों की पहचान का अभियान चलाया गया।
राज्य पोषण अभियान के आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान 6 साल तक के लगभग 1.26 करोड़ बच्चों का वजन किया गया। इनमें से करीब 12फीसदी बच्चे कुपोषित मिले। कुल पाए गए कुपोषित बच्चों में से 12.3 फीसदी बच्चे अति कुपोषित मिले। पोषण अभियान के तहत देश भर में साल 2017 से सितंबर महीने में पोषण माह का आयोजन किया जाता है। इसमें बच्चों को कुपोषण से बचाने के उपाय सुझाए जाते हैं। बच्चों का वजन कर कुपोषित बच्चों की पहचान की जाती है। पोषण माह में जनभागीदारी को बहुत महत्व दिया गया है, जिससे लोगों में कुपोषण को लेकर जागरूकता फैल सके। इसके लिए पोषण मेला, पोषण रैली, पौष्टिक आहार की जानकारी, एनीमिया के प्रति जागरूकता अधिक बच्चों का वजन किया गया। इनमें से 13.4 लाख बच्चे कुपोषित और 1.88 लाख बच्चे अति कुपोषित पाए गए। डायरिया की रोकथाम, पोषण वाटिका लगवाने जैसे कार्यक्रम होते हैं। इन कामों को एक्टिविटी कहा जाता है। पोषण माह के तहत यूपी में 2 करोड़ से ज्यादा एक्टिविटी हुई है। राज्य के पोषण अभियान के आंकड़ों के अनुसार पोषण माह के दौरान यूपी में 6 साल तक के 1.26 करोड़ से अधिक बच्चों का वजन किया गया। इनमें से 13.4 लाख बच्चे कुपोषित और 1.88 लाख बच्चे अति कुपोषित पाए गए। पोषण माह के खत्म होने के बाद पोषण जन आंदोलन शुरू किया गया है। यह जन आंदोलन मार्च में मनाए जाने वाले पोषण पखवाड़ा तक चलेगा। यूपी सरकार का लक्ष्य है कि पोषण माह के खत्म होने से लेकर मार्च 2021 तक लगभग 8 लाख कुपोषित बच्चों की पहचान की जाए। इन बच्चों की पहचान के बाद इनकी निगरानी की जाएगी और सही देखभाल से इन्हें कुपोषण के चंगुल से मुक्त कराने का प्रयास होगा। राज्य पोषण मिशन के निदेशक कपिल सिंह के मुताबिक पोषण माह के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया है। अब हमारी ओर से बच्चों की निगरानी होगी। साथ ही सप्लीमेंट्री न्यूट्रीशन प्लान के तहत इन बच्चों के परिवारों को सीधे राशन देने का काम भी शुरू हो गया है। अब इन बच्चों तक पंजीरी की जगह ड्राई राशन पहुंचाया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी स्वयं सहायता समूह को दी गई है। यूपी में बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की ओर से पहले आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को पंजीरी (पुष्टाहार) बांटने की व्यवस्था थी। अब बच्चों को राज्य के 1.88 लाख आंगनबाड़ी केन्द्रों से ड्राई राशन देने की योजना शुरू की गई है। हालांकि कई जगहों पर राशन बंटने में देरी की खबरें भी आ रही हैं। उधर ड्राई राशन की इस व्यवस्था पर कई सवाल भी उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि परिवार को दिए जाने वाले राशन का पूरा फायदा बच्चों तक नहीं पहुंच पाएगा। ऐसे में कुपोषण की समस्या और गंभीर हो सकती है। बलरामपुर जिला अस्पताल के वरिष्ठï बाल रोग विशेषज्ञ देवेंद्र सिंह ने कहा कि परिवार में राशन देने पर राशन बंट जाएगा। ऐसे में बच्चे तक उसका फायदा कम पहुंचेगा। अगर किसी बच्चे को दाल, चावल, रोटी, सब्जी, सलाद, दही के अलावा भी मल्टी विटामिन जैसे सप्लीमेंट दिए जाएं तब जाकर बच्चा अति कुपोषित होने से बच पाता है। अगर हम केवल राशन देंगे तो इसका बच्चे की सेहत पर ज्यादा असर नहीं होगा। पोषण अभियान के तहत लोगों को खानपान के प्रति भी जागरूक करने का काम किया जा रहा है। राज्य पोषण मिशन के निदेशक कपिल सिंह ने कहा कि हमने लोगों को अच्छे खानपान के बारे में जानकारी देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे- स्थानीय भोजन के अनुसार रेसिपी बुकलेट बनाई है। इसे लाभार्थियों को दिया गया है, जिसमें इस तरह की जानकारी है कि किस भोजन में कितनी कैलोरी है, कितना पौष्टिक तत्व है। साथ ही पूरे दिन का खाना कैसा होना चाहिए इसका भी एक चार्ट बनाकर दिया जा रहा है। इसके अलावा हमारी ओर से लोगों के घरों में पोषण वाटिका भी बनवाई गई है, जिससे उन्हें घर में ही पौष्टिक सब्जियां मिल सकें। इस बार पोषण माह में 4 लाख पोषण वाटिका बनवाई गई हैं। वर्ष 2019 के 6 दिसंबर को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था कि पोषण अभियान से क्या फायदा हुआ इसकी जानकारी इसके अनुमोदित अवधि के पूरे हो जाने के बाद पता चल सकती है। हालांकि राष्टï्रीय पोषण सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक उम्र के हिसाब से कम लम्बाई, उम्र के हिसाब से कम वजन और अल्पवजन की दर क्रमश: 34.7 फीसदी, 17 फीसदी और 33.4 फीसदी है, जो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के हिसाब से कुपोषण के मामलों में सुधार और कमी को दर्शाता है। सरकार पोषण अभियान को दिसंबर 2017 से चला रही है जिसका लक्ष्य तीन साल की अवधि में कुपोषण की स्थिति में सुधार लाना है।

नाकाफी साबित हो रहे पोषण पुनर्वास केंद्र
सितंबर के महीने में पोषण माह के दौरान उत्तर प्रदेश में 6 साल तक के 15 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे मिले। इनमें से 1.88 लाख बच्चे अतिकुपोषित बच्चे पाए गए। अतिकुपोषित बच्चों में से 2,823 को उपचार के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र भेजा गया। अतिकुपोषित बच्चों के अनुपात में पोषण पुर्नवास केंद्र की क्षमता काफी कम है। इसी समस्या के मद्देनजर यूपी एनएचएम की ओर से गाइडलाइंस जारी की गई है। इनके मुताबिक, कुपोषित/अतिकुपोषित बच्चों की पहचान गांव स्तर पर की जानी चाहिए, और जिन बच्चों को जटिल चिकित्सीय समस्या न हो और भूख भी लगती हो, उनका उपचार समुदाय स्तर पर ही किया जाए लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इक्विपमेंट और ट्रेेनिंग के बिना ऐसा करना मुमकिन नहीं होगा। यूपी एनएचएम की निदेशक अपर्णा उपाध्याय ने कहा कि वर्तमान में प्रदेश के 71 जिलों में 77 पोषण पुनर्वास केंद्र हैं। इन केंद्रों में हर साल लगभग 18 हजार बच्चों को उपचारित करने की है। जाहिर है यह राज्य के अतिकुपोषित बच्चों का मात्र 1.5 फीसदी ही है। 2020 में 1,400 बच्चों का उपचार हो पाया है जबकि अतिकुपोषित बच्चों की अनुमानित संख्या 11 लाख बताई गई है।
यूपी में कुपोषण का हाल
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में पांच साल तक के 46.3 फीसदी बच्चे अविकसित कद के हैं, इन बच्चों की लंबाई उनकी उम्र के हिसाब से नहीं बढ़ती। इस मामले में राष्ट्रीय औसत 38.4 फीसदी है। इसी तरह यूपी में पांच साल तक की उम्र के 39.5 फीसदी बच्चों का वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम पाया गया। इस मामले में राष्टï्रीय औसत 35.7 फीसदी है। इसके बाद 2016 से 2018 के बीच हुए राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में भी यह आंकड़े चिंताजनक ही रहे। उत्तर प्रदेश में चार साल से कम उम्र के 38.8 फीसदी बच्चे अविकसित कद के थे। इसके अलावा 18.5फीसदी बच्चों का वज़न उनकी उम्र के हिसाब से कम था। यह रिपोर्ट 2019 में आई थी।
क्या कहना है चिकित्सक का
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ देवेंद्र सिंह ने कहा कि कुपोषण की लड़ाई में सबसे अहम भूमिका अभिभावकों की है। बच्चे को जन्म से लेकर 6 महीने तक स्तनपान कराना बहुत जरूरी है। इस दौरान बॉटल फीडिंग नहीं करानी चाहिए। 6 महीने बाद मां के दूध के साथ ही दाल, दलिया, खिचड़ी जैसी चीजें खिलाना शुरू कर देनी चाहिए। बच्चे के बड़े होने पर अगर उसका वजन मेंटेन नहीं हो रहा तो उसे मल्टी विटामिन सप्लीमेंट भी दिया जाना चाहिए। बढ़ते हुए बच्चे की हड्डियां भी बढ़ रही होती हैं तो उन्हें कैल्शियम की जरूरत होती है। हर बच्चे को प्रतिदिन 80 से 100 मिलीग्राम कैल्शियम चाहिए होता है जो दूध से पूरा नहीं हो सकता। ऐसे में कैल्शियम सप्लीमेंट जोड़ा जा सकता है। मां-बाप अगर बच्चों का इतना ख्याल रखेंगे तब जाकर वह कुपोषण से बच पाएगा।
भारत 2025 तक नहीं जीत पायेगा जंग
ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 तक भारत अपने न्यूट्रिशन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पायेगा। रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के दौर में सभी को अधिक न्यूट्रिशन या पोषण की जरूरत है ताकि उनका इम्यून सिस्टम ठीक रहे, लेकिन रिपोर्ट की मानें तो पोषण में असमानता के कारण कुपोषण को मिटाने के लिए 2025 तक का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था, वह पूरा होता नहीं दिख रहा है।
बच्चों को मिलने वाला राशन उन तक पहुंचा या नहीं इसकी निगरानी के लिए भी राज्य पोषण मिशन ने योजना तैयार की है। इस व्यवस्था को पारदर्शी बनाने के लिए हम कंप्यूटराइज्ड सिस्टम बना रहे हैं। इसमें किस लाभार्थी को कितना राशन मिला है, इसकी पूरी जानकारी होगी। हम एक कॉल सेंटर भी बना रहे हैं जिससे महीने में न्यूनतम 1 लाख कॉल की जाएगी। इसमें लाभार्थियों से पूछा जाएगा कि उन्हें राशन मिला या नहीं। यह सब एक महीने के अंदर शुरू हो जाएगा,
कपिल सिंह, निदेशक, राज्य पोषण मिशन
पंजीरी बांटना तो पिछले तीन महीने से बंद है। इस महीने से राशन बांटने की बात थी, लेकिन अभी तक कई जगहों पर बच्चों को राशन नहीं मिला है। पंजीरी बांटने की जिम्मेदारी हमारी होती थी तो हम बांट देते थे। अब राशन की जिम्मेदारी स्वयं सहायता समूहों को दी गई है। राशन आ गया है, जब व्यवस्था नई होती है तो थोड़ी परेशानी होती है। आने वाले दिनों में आंगनबाड़ी केंद्र से राशन बांट दिया जाएगा।
गीता पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष आंगनबाड़ी कर्मचारी एवं सहायिका एसोसिएशन

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