जातीय जनगणना का मुद्दा भारी न पड़ जाए भाजपा को

  • एनडीए के सहयोगियों समेत विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर बनाया दबाव
  • हिंदुत्व की सियासत करने वाली भाजपा को जातीय जनगणना से लग सकता बड़ा झटका
  • भाजपा के अंदर से भी ओबीसी की गणना को उठने लगे सुर, सरकार वेट एंड वॉच मोड पर
  • बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में प्रधानमंत्री मोदी से मिला प्रतिनिधिमंडल

4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। यूपी समेत कई राज्यों में आगामी विधान सभा चुनाव को देखते हुए जातीय जनगणना का मुद्दा फिर गरमाने लगा है। विपक्षी दलों के साथ भाजपा के सहयोगी दल भी मुखर हो गए हैं और केंद्र सरकार पर जातीय जनगणना कराने का दबाव बनाने लगे हैं। भाजपा के कई नेता भी इस मामले में विरोधी दलों के सुर में सुर मिला रहे हैं। वहीं हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा सरकार जातीय जनगणना कराने में हिचक रही हैं। भाजपा को पता है कि यदि वह जातीय जनगणना कराती है तो यह चुनाव में भारी पड़ सकता है क्योंकि इससे उसका हिंदुत्व का एजेंडा कमजोर हो जाएगा। ऐसे में उसके सामने बड़ी चुनौती पेश हो गयी है। जनगणना में जातियों की गणना कराने पर सियासत तेज हो चुकी है। पिछले दिनों केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा संसद में कहा गया था कि सरकार का जातीय जनगणना कराने का कोई विचार नहीं है, उसके बाद ही विपक्ष मुखर हो गया। अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्षी राजद समेत विभिन्न दलों के नेता इस मामले में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और जातीय जनगणना कराने की मांग की। नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना की मांग ऐसे वक्त उठायी है जब भाजपा और केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की गतिविधियां तेज हैं। वैसे नरेंद्र मोदी सरकार का रुख पहले के रुख से अलग है। 2018 में मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि 2021 की जनगणना में वह पिछड़ी जातियों की गणना कराएगी। मोदी सरकार मंत्रिमंडल विस्तार के बाद ख़ुद को ओबीसी मंत्रियों की सरकार कहते नहीं थक रही है और नीट परीक्षा के ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी आरक्षण देने पर पर अपनी पीठ थपथपा रही है ऐसे में वह जातीय जनगणना कराने से क्यों डर रही है? दरअसल, भाजपा की राजनीति हिंदुत्व के मुद्दे पर टिकी है। हिंदुत्व का मतलब पूरा हिंदू समाज है, अगर जाति के नाम पर वह विभाजित हो जाता है तो जाति की राजनीति करने वाले दलों का प्रभाव बढ़ जाएगा और भाजपा को नुकसान होगा। गौरतलब है कि 2014 और 2019 के लोक सभा चुनावों में भाजपा की बड़ी जीत का एक अहम फैक्टर ओबीसी वोटर रहे हैं। वहीं विधान सभा चुनाव में भी उसे ओबीसी वोट मिले थे। सपा और बसपा भी जातीय जनगणना कराने पर जोर दे रहीं हैं। ऐसे में भले ही जातीय जनगणना को लेकर भाजपा सैद्धांतिक रूप से समर्थन कर रही हो लेकिन यदि जातीय जनगणना हुई तो यह भाजपा को भारी पड़ सकता है।

90 साल पहले आखिरी बार हुई थी जातीय जनगणना

देश में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में हुई थी। उस समय पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे। तब देश की आबादी 30 करोड़ के करीब थी। अब तक उसी आधार पर यह अनुमान लगाया जाता रहा है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं। 1951 में जातीय जनगणना के प्रस्ताव को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने यह कहकर खारिज कर दिया था कि इससे देश का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है। आजाद भारत में 1951 से 2011 तक की हर जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े ही जारी किए गए। मंडल आयोग ने भी 1931 के आंकड़ों पर यही अनुमान लगाया कि ओबीसी आबादी 52 फीसदी हैं। आज भी उसी आधार पर देश में आरक्षण की व्यवस्था है जिसके तहत ओबीसी को 27 फीसदी, अनुसूचित जाति को 15 फीसदी तो अनुसूचित जनजाति को 7.5 फीसदी आरक्षण मिलता है।


सपा प्रमुख अखिलेश भी उठा चुके हैं मांग

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी जातीय जनगणना कराने की मांग की है। अखिलेश यादव ने संसद में इसकी मांग उठाते हुए कहा था कि अगर भाजपा जातियों की गिनती नहीं करती तो ये पिछड़ों की जिम्मेदारी है कि वह भाजपा को सत्ता से बाहर कर दे।

रोहिणी आयोग की रिपोर्ट का इंतजार

ओबीसी आरक्षण को संतुलित करने के लिए सरकार ने रोहिणी आयोग गठित की है, जिसकी रिपोर्ट आना बाकी है। आयोग को कई बार विस्तार मिल चुका है। उम्मीद जताई जा रही है आयोग इस साल के अंत तक अपनी रिपोर्ट दे देगा। इस समय 2,700 जातियां ओबीसी में शामिल हैं। इनमें से 1700 जातियां अब भी आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। एक अनुमान के मुताबिक ओबीसी में शामिल करीब तीन दर्जन जातियां आरक्षण का 70 फीसदी लाभ हासिल कर रही हैं।

बिहार के सभी दलों के प्रतिनिधियों ने अपनी बातें रखीं। प्रधानमंत्री ने सभी की बातों को सुना। प्रतिनिधिमंडल ने उनसे विचार करने का आग्रह किया। उन्होंने इसे खारिज नहीं किया है।

नीतीश कुमार सीएम, बिहार

प्रतिनिधिमंडल ने केवल बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में जातीय जनगणना को लेकर मुलाकात की है। अब प्रधानमंत्री के फैसले का इंतजार है।

तेजस्वी यादव, नेता प्रतिपक्ष, आरजेडी

ओबीसी समाज की अलग से जनगणना कराने की मांग बसपा शुरू से ही करती रही है। अभी भी बसपा की यही मांग है और इस मामले में केंद्र की सरकार अगर कोई सकारात्मक कदम उठाती है तो बसपा इसका समर्थन करेगी।

मायावती, बसपा प्रमुख

भाजपा कभी जातीय जनगणना के विरोध में नहीं रही इसलिए हम इस मुद्दे पर विधान सभा और विधान परिषद में पारित प्रस्ताव का हिस्सा रहे हैं। पीएम मोदी से मिलने वाले बिहार के प्रतिनिधिमंडल में भी भाजपा शामिल है।

सुशील कुमार मोदी, सांसद, भाजपा

आरक्षण को पारदर्शी बनाया गया तो समाज में द्वेष दूर होगा। क्रीमी लेयर और नॉन क्रीमी लेयर में लोगों का प्रतिशत भी सभी को पता चल जाएगा। जाति आधारित जनगणना को बिहार ही नहीं पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए।

अजीत शर्मा, कांग्रेस विधायक दल के नेता, बिहार

जातीय आधार पर शोषण से छुटकारा दिलाने के लिए जाति आधारित जनगणना जरूरी है। इसी को लेकर आज हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में पीएम से मिले।

अजय कुमार, नेता सीपीआईएम

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