खिलौना निर्माण के स्वदेशीकरण का अर्थ

sanjay sharma

सवाल यह है कि क्या सरकार स्वदेशी खिलौने के जरिए चीन के खिलानों को मात दे पाएगी? क्या भारत के खिलौना बाजार में चीन के दबदबे को समाप्त किया जा सकेगा? क्या तकनीकी और कीमतों के आधार पर भारत के कारीगर लोगों को बेहतर उत्पाद उपलब्ध करा सकेंगे? क्या यह स्थानीय स्तर पर बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मुहैया करा पाएगा?

आत्मनिर्भर भारत को हकीकत में बदलने के लिए सरकार की नजरें हर छोटे-बड़़े विदेशी उत्पादों के स्वदेशी निर्माण पर टिक गई है। अब सरकार की नजर खिलौना बाजार पर है। भारत में चीन के खिलौने छाए रहते हैं। लिहाजा सरकार ने इसकी जगह तकनीकी आधारित स्वदेशी खिलौने के निर्माण पर बल देना शुरू कर दिया है। साथ ही इससे युवा पीढ़ी की सृजनात्मकता को भी जोडऩे की वकालत कर रही है। सवाल यह है कि क्या सरकार स्वदेशी खिलौने के जरिए चीन के खिलानों को मात दे पाएगी? क्या भारत के खिलौना बाजार में चीन के दबदबे को समाप्त किया जा सकेगा? क्या तकनीकी और कीमतों के आधार पर भारत के कारीगर लोगों को बेहतर उत्पाद उपलब्ध करा सकेंगे? क्या यह स्थानीय स्तर पर बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मुहैया करा पाएगा? क्या युवा पीढ़ी इस व्यवसाय में अपनी रचनात्मकता दिखाने में दिलचस्पी लेगी?
कोरोना ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को बेपटरी कर दिया है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मोदी सरकार ने वोकल फॉर लोकल के जरिए आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया। हर छोटे-बड़े उत्पादों को देश में निर्मित करने की कोशिश हो रही है। जहां तक खिलौने के निर्माण का सवाल है तो देश में स्थानीय स्तर पर खिलौनों का निर्माण वर्षों से हो रहा है। यहां लकड़ी और मिट्टी के खिलौने बनाने की समृद्ध परंपरा रही है लेकिन तकनीकी से युक्त खिलौनों ने इन खिलौनों को चलन से बाहर कर दिया है। इसका सीधा असर खिलौना कारीगरों पर पड़ा। हजारों की संख्या में भारतीय कारीगर तकनीक के आगे विवश हो गए और दूसरा कारोबार या मजदूरी करने लगे। हालांकि भारत में पहले के मुकाबले खिलौनों की मांग अधिक है। यहां खिलौनों का बाजार दस हजार करोड़ सालाना है। इनमें साढ़े चार हजार करोड़ का संगठित बाजार है। इसमें 90 फीसदी खिलौने चीन से आयात होते हैं। हालांकि इसे हतोत्साहित करने के लिए 200 फीसदी तक आयात शुल्क लगाया गया लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। अब सरकार इस बाजार को भारतीय कारीगरों की झोली में डालने की तैयारी कर रही है लेकिन यह आसान नहीं है। सरकार को न केवल स्वदेशी कारीगरों को इसके लिए जरूरी आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी होगी बल्कि उन्हें तकनीकी रूप से दक्ष भी करना होगा। इसके अलावा ये खिलौने सुंदरता में भी चीनी खिलौनों से बेहतर होने चाहिए। इसकी कीमत भी कम रखनी होगी। इसमें दो राय नहीं कि ऐसा होने पर रोजगार के नए साधन उत्पन्न होंगे। साथ ही ये खिलौने भारतीय परिवेश और विविधता में एकता की संस्कृति के वाहक भी बने सकेंगे।

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