तो क्या पलटी मारने की तैयारी में हैं राजभर

लखनऊ। कभी भाजपा के करीबी रहे और योगी सरकार का हिस्सा रहे ओम प्रकाश राजभर ने कुछ अरसे पहले एनडीए के गठबंधन से अलग कर दिए गए थे तब उन्होंने भाजपा सहित योगी पर तमाम तरह के आरोपों की बौछार की थी लेकिन अब जब विधानसभा चुनाव में कुछ महीनों का ही वक्त बचा है राजभर फिर से पलटी मारने की मूड में नजर आ रहे हैं। योगी, मोदी और शाह को कोसने वाले राजभर आखिर चुनावी बेला में क्यों भाजपा के करीब आना चाहते हैं यह आम लोग के लिए भले ही कोई बड़ा प्रश्र हो लेकिन राजनीति के जानकर इस राज भरे प्रेम की वजह अच्छी तरह से जानते हैं।
राजभर और उनकी पार्टी यूपी की सियासत में बिना भाजपा के किस हैसियत में रही है यह बात किसी छिपी नहीं है। राजभर की पार्टी का इतिहास उठाकर देखने मात्र से ही पता चल जाएगा कि राजभर यूपी के चुनावी समर में अपने दम पर दो कदम भी चलने की ताकत नही रखते हैं। अभी चंद दिनों पहले तक भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन कर चुनाव में भाजपा को टक्कर देने की बात कहने वाले राजभर को गठबंधन की शुरूआत में ही समझ में आ गया कि बिना भाजपा के वो इस चुनाव में कुछ भी नहीं कर पाएंगे। रही सही कसर उन्होंने ओवैसी को साथ लेकर चलने की बात कहकर पूरी कर दी। जिसके बाद उनका अपना ही वोटबैंक उनसे खासा नाराज हो गया।
अब हालात यह है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के राजनीतिक नफा-नुकसान को लेकर राजनीतिक दलों ने अपने-अपने समीकरण बनाने शुरू कर दिए हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने मंगलवार को यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से मुलाकात की, जिसके बाद उनके एनडीए में लौटने की अटकलें लगाई जा रही हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह कभी यूपी में एनडीए का हिस्सा रहे ओमप्रकाश राजभर की वापसी का तानाबाना बुन रहे हैं, क्योंकि दोनों नेता बलिया से आते हैं। दयाशंकर स्वतंत्रदेव सिंह से मिलने के लिए राजभर को अपने साथ ले गए थे। दयाशंकर सिंह ने कहा कि उनकी कोशिश ओमप्रकाश राजभर को एनडीए में लाने की है क्योंकि राजनीति में कोई स्थायी मित्र या दुश्मन नहीं है। राजभर शुरू से ही दलित और पिछड़े वर्ग के लिए प्रधानमंत्री मोदी के काम के समर्थक रहे हैं। ऐसी स्थिति में वह फिर से हमारे साथ आ सकते हैं।
दूसरी ओर ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि असदुद्दीन ओवैसी अभी तक उनके मोर्चा का हिस्सा नहीं हैं। ओवैसी ने भी मोर्चा में शामिल होने की कोई घोषणा नहीं की है। इसके साथ ही राजभर ने कहा कि अगर बीजेपी उनकी शर्तों को स्वीकार करती है तो फिर वह फिर से एनडीए में शामिल हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा जातीय जनगणना, सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करती है तो फिर हम पूरे मन से एनडीए का हिस्सा बनेंगे।
अब अगर सिक्के के दूसरे पहलू को देखें तो असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर लखनऊ में बैठक करने से लेकर पूर्वांचल के दौरे पर जा चुके हैं। इसके साथ ही दोनों नेता कई बार सार्वजनिक रूप से एक साथ चुनाव लडऩे की बात भी कह चुके हैं। बावजूद इसके अब ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि असदुद्दीन ओवैसी अभी मोर्चा का हिस्सा नहीं हैं। इससे साफ है कि ओमप्रकाश राजभर असदुद्दीन ओवैसी से दूरी बनाए हुए हैं और उन्होंने बीजेपी के साथ जाने की कोशिश शुरू कर दी है।
दरअसल इस दूरी की शुरूआत ओवैसी के बहराइच दौरे से ही शुरू हो गई थी। इस दौरे में कुछ ऐसा हुआ कि जिसने राजभर को बैकफुट पर आने पर मजबूर कर दिया। दरअसल एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में बहराइच का दौरा किया था, जहां उन्होंने सालार मसूद गाजी के मकबरे पर नमाज अदा की थी । यह बात सभी जानते हैं कि सालार मसूद गाजी और महाराज सुहेलदेव के बीच युद्ध हुआ था। ओम प्रकाश राजभर ने इन्हीं महाराज सुहेलदेव के नाम से अपनी पार्टी बनाई है। यही वजह है कि बीजेपी ने ओवैसी के मसूद गाजी के मकबरे पर जाने के लिए ओम प्रकाश राजभर को कठघरे में खड़ा किया था। बीजेपी ने कहा था कि राजभर ओवैसी के साथ गठबंधन कैसे कर सकते हैं, जो उस मुस्लिम शासक की कब्र पर गए, जिनके साथ महाराज सुहेलदेव लड़े?
ओमप्रकाश राजभर ने मसूद गाजी के मकबरे पर जाने के बाद असदुद्दीन ओवैसी से दूरी बना ली थी। यही कारण है कि ओमप्रकाश राजभर ने 15 जुलाई को असदुद्दीन ओवैसी के वेस्ट यूपी दौरे से दूरी बना ली, जबकि दोनों नेताओं ने मिलकर गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, बुलंदशहर और सम्भल के पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और मंच साझा करना था तथा बाद में मुरादाबाद पहुंचना था।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक ओवैसी ने ओमप्रकाश राजभर के बदले हुए तेवरों को देखते हुए उनसे दूरी बना ली है। ऐसी स्थिति में ओवैसी और राजभर दोनों नेता यूपी में अलग-अलग राजनीतिक रास्तों की तलाश में हैं। ओवैसी का राजनीतिक आधार मुस्लिम वोटों पर है, जबकि ओमप्रकाश राजभर का राजभर समुदाय पर है।
हालांकि भाजपा की नजर पूर्वांचल के राजभर समुदाय पर है और वह इस वोटबैंक को अपने पाले में लाने का पूरा प्रयास कर रही है। यही वजह है कि ओमप्रकाश राजभर के साथ दरार के बाद बीजेपी धीरे-धीरे अनिल राजभर और अन्य पिछड़े नेताओं के जरिए इन इलाकों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन पंचायत चुनाव के नतीजे पार्टी के हित में नहीं थे। ऐसी स्थिति में बीजेपी और ओमप्रकाश राजभर के बीच निकटता फिर से बढऩे लगी।
ओमप्रकाश राजभर ने सबसे पहले मुरादाबाद में योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र सिंह से मुलाकात की और अब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह से मुलाकात की है। ऐसी स्थिति में माना जा रहा है कि राजभर और बीजेपी एक बार फिर एक साथ चुनाव लडऩे की संभावनाएं तलाश रहे हैं। हालांकि इस बार भाजपा अभी भी उनके साथ गठबंधन से होने वाले हानि और लाभ का आंकलन कर रही है।
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने भाजपा के साथ चुनाव लड़ा और योगी सरकार में मंत्री बने। इसके बाद लोकसभा चुनाव के बाद मई 2019 में उन्हें योगी सरकार से निकाल दिया गया और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस वजह से भाजपा इस बार उनके बारे में जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती है।

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