छोटे दलों की सरताज बनी निषाद पार्टी, संजय निषाद का कद बढ़ा

लखनऊ। प्रदेश की राजनीति में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) नए सितारे की तरह सामने आई है। इस बार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर 16 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे। इनमें से 11 पर जीत हासिल हुई है। खास बात यह रही कि पार्टी ने 10 सीटों पर अपने सिंबल पर प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था। जबकि छह सीटों पर पार्टी के प्रत्याशी भाजपा के सिंबल पर मैदान में उतरे। इस बार चुनाव में भाजपा के साथ निषाद पार्टी की जुगलबंदी मतदाताओं को खूब रास आई। पार्टी के ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है। गोरखपुर और बस्ती मंडल की पांच सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष संजय निषाद के पुत्र सरवन निषाद चौरीचौरा से चुनावी मैदान में उतरे। वह गोरखपुर ग्रामीण से दावेदारी कर रहे थे। ऐन वक्त पर पार्टी ने उन्हें चौरीचौरा भेजा। यह विधानसभा पार्टी के लिए चुनौती साबित हो रहा था।

यहां पर पार्टी के कद्ïदावर नेता बगावत कर चुके थे। भाजपा के टिकट पर सरवन ने करीब 45 फीसदी मत हासिल किया। महाराजगंज की नौतनवां सीट पर भी निषाद पार्टी ने जोरदार जीत हासिल की। इस सीट पर बाहुबली नेता अमरमणि के पुत्र अमन मणि निर्दलीय विधायक रहे। इस बार वह बसपा के टिकट पर मैदान में रहे। उन्हें निषाद पार्टी के ऋ षी त्रिपाठी ने हरा दिया। कुशीनगर के तमकुहीराज और खड्डा सीट पर निषाद पार्टी के प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई। संत कबीर नगर के मेहदावल सीट पर भी निषाद पार्टी ने जीत का परचम फहराया। पार्टी के टिकट पर कुशीनगर के तमकुहीराज से चुनाव लड़ने वाले डॉ असीम कुमार भी विधायक बन गए। इसके अलावा खड्डा से विवेक पांडेय, मेहदावल से अनिल त्रिपाठी भी विधानसभा में पहुंच गए हैं।

वेस्ट यूपी में भाजपा को मिला जाटों और किसानों का साथ

लखनऊ। कृषि कानून और सीएए विरोधी आंदोलन के साथ ही छुट्टा पशुओं की समस्या, हाथरस कांड और लखीमपुर खीरी कांड को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी मुद्दा बनाने वाले विपक्ष के सामने भाजपा को असहज स्थिति का सामना करना पड़ेगा, हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। अपने विकास कार्यों, जनकल्याणकारी योजनाओं और कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर जनता के बीच उतरी भारतीय जनता पार्टी को पश्चिमी यूपी में भी शानदार कामयाबी मिली है। यहां तक कि भाजपा को उस जाट समाज का वोट भी झूमकर मिला, विपक्षी दलों द्वारा जिस बारे में भ्रम फैलाया जा रहा था कि वो भाजपा से नाराज हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, आगरा, अलीगढ़ और बरेली मंडलों के 26 जिलों की 136 विधानसभा सीटों पर सन 2017 के चुनाव में भाजपा ने 109 सीटों पर विजय हासिल की थी जबकि सपा के खाते में 21 सीटें गई थीं।

नहीं चला कृषि कानून के विरोध का मुद्दा

पश्चिमी उप्र में चुनाव की घोषणा के बाद कई मुद्दे थे। इनमें कृषि कानून के विरोध में चले आंदोलन को विपक्ष ने खूब हवा देने की कोशिश की थी। गाजीपुर बार्डर पर इस आंदोलन का नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत कर रहे थे। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी अपने चुनाव प्रचार में भाजपा पर किसान हितों की अनदेखी का बार-बार आरोप लगाया था। गन्ना बकाया, महंगाई और बेरोजगारी का भी राग छेड़ा गया। हालांकि, बाद के दिनों में यह सभी मुद्दे पीछे होते गए और इनकी जगह ले ली कानून व्यवस्था ने। भाजपा नेताओं के भाषण में विकास और जनकल्याणकारी योजनाओं के साथ ही कैराना पलायन से लेकर कवाल कांड और दंगों से लेकर सोतीगंज तक की चर्चा स्थायी भाव में बनी रही। चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हुआ कि कृषि कानून का मुद्दा कारगर नहीं रहा और अधिकांश जगहों पर जनता ने भाजपाराज में हुए विकास और बेहतर रही कानून व्यवस्था को ही सामने रखकर मतदान किया।

रालोद के गढ़ में भाजपा का जलवा

जाट बहुल जिला बागपत को रालोद का गढ़ माना जाता है। यहां विधानसभा की तीन सीटें हैं और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने यहीं की छपरौली सीट से चुनाव लड़ा था। सन 2017 के चुनाव में यहां की दो सीटों पर भाजपा और एक सीट पर रालोद को विजय मिली थी। बाद में रालोद विधायक ने भी भाजपा का दामन थाम लिया था। इस बार के चुनाव में भी भाजपा ने यहां की दो सीटों पर कब्जा बरकरार रखा, जबकि छपरौली सीट रालोद के पाले में गई। हालांकि भाजपा को सजग रखेगा पश्चिमी क्षेत्र यदि 2017 से इस चुनाव के परिणाम की तुलना करना चाहेंगे तो बेशक वेस्ट यूपी में भाजपा की सीटें अपेक्षाकृत कम दिखेंगी।

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