जारी है चाचा और भतीजे में लड़ाई

नई दिल्ली। बिहार के सियासी भूकंप के इस वक्त कई अलग-अलग केंद्र बने हुए हैं। इन्हीं में से एक केंद्र है एलजेपी यानी लोक जनशक्ति पार्टी…इन दिनों इस पार्टी में उत्तराधिकार की लड़ाई चरम पर है। मामला भले ही चुनाव आयोग तक पहुंच गया हो लेकिन चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच खुली जंग चल रही है। दोनों का ही मकसद पासवन का राजनीतिक उत्तराधिकारी बनना है। दोनो ही अपने तय रोडमैप के सहारे अपनी मंजिल पाने की कोशिश कर रहे हैं।
लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में चाचा-भतीजे के बीच राजनीतिक विवाद खत्म होता नहीं दिख रहा है। एलजेपी पर वास्तविक दावे की लड़ाई फिलहाल चुनाव आयोग के पास है और यह फैसला अभी लंबित है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी तेजी से चल रहा है। इस बीच दोनों गुटों द्वारा पार्टी के संस्थापक स्वर्गीय रामविलास पासवान की जयंती पांच जुलाई को मनाने की भी तैयारी की जा रही है। जानकारी के अनुसार बता दें कि जहां पशुपति कुमार पारस पार्टी के प्रदेश कार्यालय में बड़े पैमाने पर जयंती मनाने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं चिराग पासवान उस दिन से पारस के संसदीय क्षेत्र हाजीपुर से आशीर्वाद यात्रा शुरू करेंगे। पशुपति पारस ने कहा कि इसका नाम आशीर्वाद नहीं, बल्कि श्रद्धांजलि सभा होना चाहिए।
पारस गुट के प्रवक्ता श्रवण कुमार अग्रवाल ने बताया कि मरने के बाद रामविलास पासवान की पहली जयंती ऐतिहासिक होगी। कोविड नियमों का पालन करते हुए पार्टी कार्यालय में ही इसे मनाया जाएगा। इसके अलावा पार्टी कार्यकर्ता प्रदेश भर में कई स्थानों पर जयंती कार्यक्रम मनाने में जुटे हैं। दूसरी ओर चिराग पासवान अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान की जयंती पर आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत करेंगे। यह यात्रा स्वर्गीय रामविलास पासवान की जन्मस्थली हाजीपुर से शुरू होगी।
हाजीपुर चिराग के चाचा पशुपति पारस का संसदीय क्षेत्र भी है रामविलास इस सीट से कई बार सांसद रह चुके हैं। दावा किया जा रहा है कि यह यात्रा रामविलास पासवान के रिकॉर्ड तोड़ चुनावी आंकड़ों की तरह ऐतिहासिक होगी, जो आने वाले समय में बिहार की राजनीति को नई दिशा देगी। इसके साथ ही पशुपति पारस ने पांच जुलाई को चिराग पासवान की आशीर्वद यात्रा पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि मैं आशीवा्रद यात्रा नाम से को रद करता हूं। यह किस बात का आशीर्वाद है?
पशुपति कुमार पारस ने कहा कि रामविलास पासवान इस दुनिया में नहीं हैं। इस यात्रा का नाम श्रद्धांजलि सभा होना चाहिए। लेकिन, सिर्फ हाजीपुर से ही क्यों? चिराग पासवान जमुई से सांसद हैं, इसलिए उन्हें जमुई से शुरुआत करनी चाहिए। पारस ने कहा कि चिराग हमें क्या चुनौती देंगे? हाजीपुर रामविलास पासवान की कर्मभूमि था। वहां 42-43 साल तक वह राजनीति करते रहे। गिनीज बुक में अपना नाम दो बार दर्ज करावाया। वह पासवान जी के पुत्र हैं, इसलिए उन्हें लगा होगा कि जनता का ध्यान उनकी ओर जाएगा, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कुल मिलाकर राजनीति के जानकारों का यह कहना है कि अभी चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी भले ही पारस ने पार्टी पर वक्ती तौर पर अपना कब्जा जमा लिया हो लेकिन इस कब्जे बरकरार रखना बड़ी बात होगी क्योंकि चिराग एक ओर नीतीश और तेजस्वी को गोल-गोल घुमा रहे हैं तो दूसरी ओर वह आशीर्वाद यात्रा के दम पर अपनी जमीनी पकड़ का एहसास पारस को कराना चाहते हैं। इसके बाद ही वह पार्टी पर अपने कब्जे के लिए तैयार रोडमैप के दूसरे पार्ट पर काम करना शुरू करेंगे।

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