जहरीली शराब और लापरवाह तंत्र

sanjay sharma

सवाल यह है कि आखिर सरकारी ठेकों में जहरीली शराब कैसे पहुंच रही है? क्या शराब माफिया और ठेके के कर्मचारियों की मिलीभगत से यह धंधा चल रहा है? आबकारी और पुलिस विभाग क्या कर रहा है? क्या पूरे प्रदेश में शराब माफिया का नेटवर्क संचालित हो रहा है? इन मौतों का जिम्मेदार कौन है? क्या केवल मुआवजा देने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने भर से इस धंधे को रोका जा सकेगा?

उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब से होने वाली मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। प्रयागराज में जहरीली शराब पीने से सात लोगों की मौत हो गई। इसके पहले लखनऊ, मथुरा और फीरोजाबाद में शराब से एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। यह शराब सरकारी ठेकों से खरीदी गई थी। सवाल यह है कि आखिर सरकारी ठेकों में जहरीली शराब कैसे पहुंच रही है? क्या शराब माफिया और ठेके के कर्मचारियों की मिलीभगत से यह धंधा चल रहा है? आबकारी और पुलिस विभाग क्या कर रहा है? क्या पूरे प्रदेश में शराब माफिया का नेटवर्क संचालित हो रहा है? इन मौतों का जिम्मेदार कौन है? क्या केवल मुआवजा देने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने भर से इस धंधे को रोका जा सकेगा? कड़े कानूनों के बावजूद हालात बिगड़ते क्यों जा रहे हैं? क्या सरकार को आबकारी नीति में बदलाव की जरूरत नहीं महसूस हो रही है?
उत्तर प्रदेश में अवैध शराब की जगह अब सरकारी ठेकों से मिलने वाली शराब लोगों की जान लेने लगी हैं। सरकारी ठेकों में बिकने वाली शराब से हो रही मौतें पूरे तंत्र को कठघरे में खड़ा कर रही है। दरअसल, पूरे प्रदेश में शराब माफियाओं का नेटवर्क चल रहा है। इस नेटवर्क में सरकारी शराब के ठेकेदार से लेकर सेल्समैन तक जुड़े हुए हैं। वे अधिक पैसों के लालच में लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। सरकारी ठेके की शराब में न केवल घातक पदार्थों की मिलावट की जा रही है बल्कि उन्हें ब्रांड की बोतलों में पैक कर बेचा जा रहा है। यह धंधा खूब फल-फूल रहा है लेकिन आबकारी विभाग को इसकी भनक तक नहीं लग रही है। आबकारी विभाग की ऐसी लापरवाही से उसकी कार्यप्रणाली और मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं। तमाम ठेकों का समय-समय पर निरीक्षण तक नहीं किया जाता है। कभी-कभी निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति की जाती है। इस खेल में सेल्समैन, ठेकेदार और शराब माफिया सभी शामिल हैं। इसका परिणाम यह है कि शराब से होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। यह दीगर है कि घटनाओं के घटने के बाद आबकारी विभाग और पुलिस प्रशासन सक्रिय होता है। कुछ दिन बाद सबकुछ पहले की तरह सामान्य हो जाता है। इसके कारण शराब माफिया बेखौफ होकर मौत का कारोबार कर रहे हैं। यदि सरकार शराब से होने वाली मौतों को रोकना चाहती है तो वह सरकारी ठेकों में बनने वाली शराब की गुणवत्ता की जांच सुनिश्चित करे और मिलीभगत करने वालों कर्मचारियों को चिन्हित कर कड़ी कार्रवाई करे। इसके साथ ही शराब माफिया के खिलाफ भी सतत अभियान चलाने की जरूरत है अन्यथा स्थितियां कभी भी विस्फोटक हो सकती हैं।

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