ठेकेदार जावेद को कुछ महीने में नियम ताक पर रखकर करोड़ों के 33 काम

जितिन जी यह रिश्ता क्या कहलाता है

  • पीडब्ल्यूडी बरेली जोन में टेंडरों में हुआ महाघोटाला
  • मंत्री जितिन प्रसाद का करीबी है ठेकेदार जावेद और चीफ़ इंजीनियर निसार

चेतन गुप्ता
लखनऊ। योगी सरकार पार्ट-2 में लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद का कार्यकाल नए-नए इतिहास रच रहा है। भ्रष्ट विभागों की बात करें तो उसमें पीडब्ल्यूडी यानी लोक निर्माण विभाग का नाम ऊपरी पायदान पर आता है। सत्ता का जब संरक्षण हो तो भ्रष्टाचार अपनी कई सीमाएं लांघ जाता है। ऐसा ही कुछ चल रहा है लोक निर्माण विभाग में, जहां चीफ इंजीनियरों ने अपने चहेते ठेकेदार को 13 महीने में करोड़ों रुपए के 33 काम दे दिए। स्थानीय स्तर से लेकर जब शासन-सत्ता तक शिकायत की गई तो मामला सुर्खियों में आया। जांच पड़ताल शुरू हुई लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा।
लोक निर्माण विभाग बरेली जोन के टेंडरों में महाघोटाला सामने आया है। बरेली जोन में एक ठेकेदार हैं मोहम्मद जावेद खान, जिनकी फर्म का नाम है मैसर्स एएम बिल्डर्स। बरेली जोन में चाहे कोई भी काम हो सब पर खान का ही कब्जा होता है। 33 काम खान को 13 महीने में सेटिंग गेटिंग के जरिए मिले। इसमें एक काम लोक निर्माण विभाग पीलीभीत निर्माण खंड एक द्वारा नाले पर पुल निर्माण का है, जिसकी मौजूदा लागत 5 करोड़ 41 लाख है। जनवरी 2021 को इसका पहला आनलाइन टेंडर प्रहरी पोर्टल पर निकला। इस काम को लेकर कुल चार बार टेंडर पड़े। चौथी बार में टेंडर की बोली चार करोड़ 96 लाख मेसर्स सतीश चंद्र दीक्षित ने लगायी लेकिन टेंडर इस बार भी निरस्त हो गया। पांचवी बार में सिंगल टेंडर मो. जावेद खान के पक्ष में फाइनल हुआ। खेल यह हुआ कि दूसरे ठेकेदार सतीश चंद्र दीक्षित की जगह अपने चहेते ठेकेदार को टेंडर दिलाने के लिए अधिकारियों ने खूब हथकंडे अपनाए। अब ये हथकंडे उनके गले की फांस बनते दिख रहे हैं। नाले पर पुल निर्माण कार्य में पहली बार में तीन लोगों के टेंडर आए जिसमें जावेद और सतीश दीक्षित के अलावा जावेद की ही एक अन्य सहयोगी फर्म मैसर्स फारुख खान शामिल हुए। जावेद ने दीक्षित पर अपूर्ण अनुभव प्रमाण पत्र लगाने की शिकायत की। दीक्षित ने भी जावेद की फर्म पर कई आरोप लगाए और शिकायत दर्ज करायी। दीक्षित का कहना है कि पिछले सवा साल में तीन चीफ इंजीनियर देवेंद्र कुमार मिश्रा, देवेश कुमार तिवारी और एमएम निसार ने दीक्षित के आरोपों को खारिज कर दिया और जावेद की शिकायतों को आधार बनाकर दीक्षित को टेंडर से बाहर कर दिया। लखनऊ निविदा कमेटी ने दीक्षित के पक्ष में फैसला करते हुए उन्हें टेंडर में शामिल किया जिसके बाद बरेली जोन के मौजूदा चीफ इंजीनियर एमएम निसार ने अधीनस्थों की मदद से उस टेंडर को निरस्त करा दिया। चौथी बार जब टेंडर पड़ता है तो इसमें दो ठेकेदार दीक्षित और जावेद फिर शामिल होते हैं लेकिन यह टेंडर भी निरस्त कर दिया जाता है। इस दौरान दीक्षित के पंजीयन की समय सीमा समाप्त हो रही होती है और चीफ इंजीनियर इसकी फाइल दबाए रखते हैं। इसके कारण पांचवी बार में जावेद खान को एकल टेंडर नियमों के विरुद्ध जाकर दिया जाता है। यह ठेका चौथे टेंडर पर डाली गयी धनराशि से करीब 45 लाख अधिक है।

लोकायुक्त की जांच में फंसे कई अफसर

मैसर्स सतीश चंद्र दीक्षित को टेंडरों से बाहर रखने के लिए जो भी चीफ इंजीनियर की कुर्सी पर आया, सबने खेल किया। निविदा समिति लखनऊ ने 20 मार्च, 2021 को मीटिंग करके मोहम्मद जावेद खान की फर्जी शिकायत को खारिज करके टेंडरों की वित्तीय बिट खोलने को अनुमति दे दी। तीनों टेंडर प्रहरी पोर्टल पर पास हो गए तो मोहम्मद जावेद खान से फिर फर्जी शिकायत कराई गई कि दीक्षित ने निरस्त अनुभव प्रमाण पत्र लगाकर टेंडर में शामिल हो गए हैं। तत्कालीन चीफ इंजीनियर डीके मिश्रा ने दबाव बनाकर 25 फरवरी 2021 को टेंडर निरस्त करने की संस्तुति की लेकिन लखनऊ निविदा कमेटी ने इससे इनकार कर दिया। इसके बाद सतीश दीक्षित को डिबार करने का नोटिस दिया गया। 30 अप्रैल 2021 को डीके मिश्रा रिटायर हो जाते हैं। इसके बाद चीफ इंजीनियर देवेश कुमार तिवारी आते हैं। वे दीक्षित को तीन महीने के लिए डिबार कर देते हैं। जब चौथी बार टेंडर पड़ता है तो मुख्य अभियंता एम एम निसार ने दीक्षित के पंजीकरण के नवीनीकरण की फाइल को दबाए रखा और जावेद को टेंडर हथियाने का मौका दिया। लोकायुक्त की जांच में यह साफ हुआ है कि करीब 17 बिंदुओं पर शिकायत की गई थी, जिसमें 15 पर जांच हो चुकी है। उसमें सात अफसर पूर्व चीफ इंजीनियर देवेंद्र कुमार मिश्रा, देवेश कुमार तिवारी, मौजूदा चीफ इंजीनियर एम एम निसार, अधिशासी अभियंता पीलीभीत अनिल राणा, अधीक्षण अभियंता बरेली हर स्वरूप सिंह, अधिशासी अभियंता बदायूं अमर सिंह, अधिशासी अभियंता बदायूं हेमंत सिंह फंसते दिख रहे हैं।

बेबस नजरों से भ्रष्ट व्यवस्था का तमाशा देखते रहे जनप्रतिनिधि

अपनी ही सरकार में भ्रष्टाचार होता देख बेबस नजरों से जनप्रतिनिधि तमाशा देखते रहे। ऐसा भी नहीं है कि इन लोगों ने शासन सत्ता तक शिकायत न की हो। पीडब्ल्यूडी बरेली जोन में भ्रष्टाचार के मामले को उजागर करते हुए करीब आधा दर्जन विधायकों ने शिकायतें की लेकिन नतीजा सिफर रहा। जांच पड़ताल के नाम पर महज खानापूरी हुई और जांच फाइलों में दब गई। बदायूं से भाजपा विधायक महेश चंद गुप्ता, पीलीभीत से उस समय के विधायक रामशरण लाल वर्मा, बरेली से पूर्व विधायक राजेश मिश्रा, शाहजहांपुर से भाजपा के विधायक वीर विक्रम सिंह, बदायूं से विधायक आरके शर्मा ने शासन से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायत की। बरेली के पूर्व भाजपा विधायक राजेश मिश्रा ने मुख्यमंत्री से शिकायत की तो उस पर लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा जांच बैठाई गई। इस जांच कमेटी में लखनऊ मुख्यालय से वित्त नियंत्रक राजेश सिंह और चीफ इंजीनियर प्रदीप जैन थे। 2 महीने जांच चली लेकिन हर बार स्थानीय पीडब्ल्यूडी अफसरों द्वारा जवाब के नाम पर दीक्षित को ही दोषी ठहराया गया और बताया गया कि दीक्षित द्वारा फर्जी शिकायत की जा रही है जिसकी वजह से सरकारी काम में बाधा पड़ रही है, राजस्व का नुकसान हो रहा है और समय की बर्बादी हो रही है। छह रिमाइंडर देने के बाद जांच समिति ने चीफ इंजीनियर बरेली को समस्त प्रपत्र समेत उपस्थित होने के लिए आदेशित किया, बावजूद इसके वह जांच कमेटी के सामने आज तक पेश नहीं हुए। मजबूरन जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त की जांच का हवाला देकर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

हाईकोर्ट ने डिबार के आदेश को किया खारिज

सतीश चंद्र दीक्षित को पहली बार तीन महीने के लिए 27 अप्रैल 2021 को ब्लैक लिस्ट करने का नोटिस दिया गया। 30 अप्रैल को चीफ इंजीनियर के रूप में देवेश कुमार तिवारी आते हैं। 21 मई को 3 महीने के लिए दीक्षित को डिबार कर देते हैं। जब दीक्षित हाईकोर्ट जाने की धमकी देते हैं तो उन्हें बुलाकर 31 मई को उनका डिबार करने का आदेश रद्द कर दिया जाता है। इनके बाद जब चीफ इंजीनियर की कुर्सी पर एम एम निसार आते हैं तो वह दीक्षित को 26 नवंबर से एक साल के लिए डिबार कर देते हैं जिसके खिलाफ दीक्षित जुलाई 2022 में हाईकोर्ट जाते हैं। 28 जुलाई को हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दीक्षित को एक साल के लिए डिबार करने के आदेश को खारिज कर किया और कहा कि अफसरों ने मनमाने ढंग से इस कार्रवाई को अंजाम दिया है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी दीक्षित का डिबार बहाल नहीं किया गया। अफसरों को अब हाईकोर्ट की प्रमाणित कॉपी का इंतजार है।

पीडब्ल्यूडी बरेली जोन में भ्रष्टाचार इस कदर व्याप्त है कि अफसरों की मेहरबानी पर 13 महीनों में जावेद को 33 काम दे दिए गए। दूसरा कोई ठेकेदार ठेका पा ही नहीं सकता, जिसका मैं जीता जागता सुबूत हूं।
सतीश चंद्र दीक्षित, ठेकेदार

ए क्लास कांट्रेक्टर हूं यूपी समेत कई राज्यों में मेरी फर्म निर्माण कार्य कर रही है। सालाना करोड़ों का टर्नओवर है। काबिलियत के दम पर काम पाता हूं न कि संबंधों के आधार पर।
मो. जावेद खान, प्रोपराइटर मैसर्स एएम बिल्डर्स

सारे आरोप निराधार हैं। टेंडर नियमों के तहत किए गए। मैसर्स ए एम बिल्डर्स ए ग्रेड की फर्म है, जो पुल बनाने में माहिर है। जावेद से किसी भी प्रकार का कोई भी व्यक्तिगत रिश्ता नहीं है।
एमएम निसार, चीफ इंजीनियर बरेली जोन, पीडब्ल्यूडी

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