भाजपा का गणित बिगाड़ सकते हैं ओमप्रकाश राजभर

  •  यूपी में सौ से ज्यादा सीटों पर राजभर समाज का प्रभाव

लखनऊ। यूपी चुनाव के करीब आने के साथ ही प्रदेश में जिन जातियों के नेताओं की सक्रियता बढ़ती दिख रही है, उनमें से राजभर समाज भी एक है। पिछले विधानसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) जैसे छोटे दल से भी गठबंधन करने से भाजपा ने गुरेज नहीं किया। अब सुभासपा के किनारा करने से भाजपा को जहां नए सिरे से राजभर समाज को जोड़ने की रणनीति बनानी पड़ रही है, वहीं मिशन-2022 को फतह करने के लिए दूसरे दलों की नजर भी इस वोटबैंक पर है। पिछड़ी जातियों में राजभर समाज की आबादी करीब चार फीसदी है। 403 विधानसभा सीटों में सौ से अधिक सीटों पर राजभर समाज का ठीक-ठाक वोट है। खासतौर से पूर्वांचल के दो दर्जन से अधिक जिलों की सीटों पर समाज का वोट बैंक निर्णायक हैसियत में है। वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, आजमगढ़, देवरिया, बलिया, मऊ आदि जिलों की सीटों पर 18-20 फीसदी वोट राजभर का ही माना जाता है। समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वालों के मुताबिक, अयोध्या, अंबेडकरनगर, गोरखपुर, संतकबीरनगर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, बहराइच, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर और श्रावस्ती में भी दस फीसदी तक राजभर समाज के वोटर हैं। यही कारण रहा कि भाजपा ने वर्ष 2017 के चुनाव में राजभर समाज का मजबूत प्रतिनिधित्व कर रहे सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर से हाथ मिलाया और आठ सीटें दीं, जिसमें सुभासपा चार जीतने में कामयाब रही। चुनाव नजदीक आते ही फिर सुभासपा का साथ पाने के लिए अंदरखाने भाजपा प्रयासरत दिखी, लेकिन ओम प्रकाश स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि वह सपा, बसपा, कांग्रेस से गठबंधन कर लेंगे, लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाएंगे। इस बीच वह भागीदारी संकल्प मोर्चा के जरिए तमाम छोटे दलों को जोड़ चुनाव की तैयारी में जुटे हैं।

सुभासपा को लेकर बेचैन भाजपा

वैसे तो सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर द्वारा अपने मोर्चे के तले विभिन्न छोटे दलों का साथ लेकर चुनाव लड़ने में भाजपा अपना कुछ हद तक फायदा ही देख रही है, लेकिन उसे दिक्कत तब दिख रही है, जब भाजपा के प्रति राजभर की नाराजगी का फायदा उठाते हुए सपा या बसपा उससे गठबंधन कर ले। जातीय समीकरण के चलते गठबंधन पूर्वांचल की कई सीटों पर कुछ हजार वोट से भाजपा का खेल बिगाड़ सकता है।

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