बीमा कंपनियों को हर कीमत पर देना होगा मोटर दुर्घटना मुआवजा : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि जिसकी मृत्यु के समय कोई आय नहीं थी, उनके कानूनी उत्तराधिकारी भी भविष्य में आय में वृद्धि को जोड़कर भविष्य की संभावनाओं के हकदार होंगे। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि इस बात की उम्मीद नहीं है कि मृतक अगर किसी भी सेवा में नहीं था या उसकी नियमित आय रहने की संभावना नहीं है या फिर उसकी आय स्थिर रहेगी या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट के सामने आए इस मामले में 12 सितंबर 2012 को हुई दुर्घटना में बीई (इंजीनियरिंग) के तीसरे वर्ष में पढ़ रहे 21 वर्ष छात्र की मौत हो गई, वह दावेदार का बेटा था। हाईकोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए मुआवजे की राशि को 12,85,000 रुपए से घटाकर 6,10,000 रुपये कर दिया है। ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए 15,000 रुपए प्रति माह की बजाय मृतक की आय का आकलन 5,000 रुपए प्रति माह किया। अपील में कहा गया कि मजदूरों/कुशल मजदूरों को भी 2012 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत पांच रुपए प्रति माह मिल रहे थे।

कोर्ट ने कहा, शैक्षिक योग्यता और पारिवारिक पृष्ठभूमि को देखते हुए और जैसा कि ऊपर देखा गया है, मृतक सिविल इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में पढ़ रहा था, हमारी राय है कि मृतक की आय कम से कम 10,000 रुपये प्रति माह होनी चाहिए। विशेष रूप से इस बात पर विचार करते हुए कि साल 2012 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत भी मजदूरों/कुशल मजदूरों को पांच हजार रुपये प्रति माह मिल रहे थे।

कोर्ट ने यूनियन ऑफ इंडिया के तर्क को किया खारिज

यूनियन ऑफ इंडिया द्वारा उठाए गए इस तर्क को कोर्ट ने खारिज कर दिया कि मृतक नौकरी नहीं कर रहा था और हादसे के समय भविष्य में आय की संभावना/भविष्य की आय में वृद्धि के लिए और कुछ नहीं जोड़ा जाना है। नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी और अन्य का जिक्रकरते हुए कोर्ट ने कहा, हम कोई कारण नहीं देखते हैं कि उक्त सिद्धांत को क्यों लागू नहीं किया जा सकता है, जो वेतनभोगी व्यक्ति या मृतक एक निश्चित वेतनभोगी मृतक पर लागू होता है, जो मृतक के लिए सेवा नहीं कर रहा था या उसके पास दुर्घटना के समय कोई आय नहीं था।

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