तो क्या जय बाजपेयी ने बनाया था विकास दुबे को निपटाने का पूरा प्लान

  • एक और दो जुलाई को जय बाजपेयी लखनऊ आकर मिलता है अफसरों और राजनेताओं से और बन जाती है विकास को निपटाने की योजना
  • विकास की देश और विदेश की संपत्ति पर कब्जा जमाना चाहता था विकास का गुर्गा जय बाजपेयी
  • रात 11:52 पर एफआईआर और 12:30 बजे तीन थानों की पुलिस चौबेपुर में इकट्ठी होती है, रणनीति बनाती और रवाना भी हो जाती है, 38 मिनट में यह संभव नहीं है

  • यूपी में शायद ही कभी पुलिस ने ऐसी तेजी दिखाई हो कि रात को 11:52 पर एफआईआर दर्ज और एक बजे मुठभेड़
  • रात के साढ़े आठ बजे लखनऊ से जाता है एक प्रभावशाली का फोन और फिर एनकाउंटर की कहानी में झोल ही झोल
  • सरकारी कागजों में एफआईआर लिखने के बाद आनन-फानन में बुलाई गई दो थानों की पुलिस, मोबाइल टावर साबित कर देंगे कि इन थानों के पुलिसकर्मी दो घंटे पहले से जमे थे चौबेपुर थाने में

संजय शर्मा
लखनऊ। विकास दुबे कांड में 4पीएम की इन्वेस्टिगेशन के बाद जो तथ्य सामने आए हैं उसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी। विकास दुबे को निपटाने की कहानी उसके सबसे प्रिय जय बाजपेयी ने ही रची थी। हम आपको एक के बाद एक सारे घटनाक्रम बता रहे हैं जो यह पुष्टï करने के लिए पर्याप्त हैं कि पुलिस ने विकास दुबे के खिलाफ जो एफआईआर की थी उसके पहले और उसके बाद की सारी कहानी रची गई और सुप्रीम कोर्ट कल जिस आयोग का गठन करने जा रहा है उसने ईमानदारी से जांच कर दी तो पुलिस और एसटीएफ के अफसरों को जेल जाने से कोई नहीं रोक सकता। दरअसल, जय बाजपेयी बहुत मामूली आदमी था और विकास दुबे से रिश्तों के बाद वह करोड़ों का मालिक बन गया था। उसने यूपी के नौकरशाहों और राजनेताओं के बीच अपनी गहरी पैठ बना ली थी। यही से कहानी पलटती है और जय बाजपेयी को ख्याल आता है कि अगर विकास दुबे को निपटा दिया जाए तो करोड़ों की इस जायदाद का वह वारिस होगा साथ ही उसे यह भी यकीन हो गया कि यूपी के नौकरशाह उसके इशारे पर नाच रहे हैं तो विकास दुबे को निपटाना कोई बड़ी बात नहीं है। आइए अब हम आपको बिंदुवार इस कहानी की हकीकत से रूबरू कराते हैं।
1- जय बाजपेयी विकास दुबे को निपटाने की योजना बना रहा था। इसी बीच एक जुलाई को विकास ने राहुल तिवारी की पिटाई कर दी और जय को अपनी योजना पूरी करने का बहाना मिल गया। उसने लखनऊ के अपने ताकतवर लोगों के कान भरे।
2-दो जुलाई की रात साढ़े आठ बजे लखनऊ के एक ताकतवर शख्स ने एसएसपी कानपुर को फोन किया और हडक़ाते हुए कहा कि तुम लोग विकास दुबे का इंतजाम क्यों नहीं कर रहे हो। आज ही इसमें फैसला करो।
3-इसके तत्काल बाद एसएसपी कानपुर ने चौबेपुर की पुलिस को इस संबंध में वैसे ही निर्देश दिए जैसा जय चाहता था।
4-एसटीएफ में तैनात अनंतदेव भी जय के लगातार संपर्क में थे। वे दो साल कानपुर के एसएसपी रहे थे और इस मामले में वे भी सक्रिय हो गए। बताया जाता है कि जय के साथ उनका करोड़ों का लेन-देन है। हालांकि इसकी पुष्टिï होनी अभी बाकी है। अनंतदेव की इन्हीं करतूतों के चलते यूपी के पूर्व ईमानदार और तेजतर्रार डीजीपी ब्रजलाल ने उनको एसटीएफ से निकाल दिया था।
5-एसएसपी के इस फरमान के बाद रात को नौ बजे से दस बजे के बीच थाना चौबेपुर, बिठुर, शिवराजपुर और सीओ बिल्हौर थाना चौबेपुर पहुंच जाते हैं। इन सभी के मोबाइल की लोकेशन रात के नौ बजे से दस बजे के बीच थाना चौबेपुर में ही मिलेगी।
6-पुलिस की कोई कार्रवाई तभी शुरू होती है जब किसी घटना की एफआईआर दर्ज होती है। जिस समय यह सारे पुलिसकर्मी थाना चौबेपुर में इकट्ठे थे तब तक थाना चौबेपुर में कोई एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई थी।
7- इसके बाद तय हुआ कि ऊपर के ताकतवर लोग चाहते हैं कि विकास को निपटा दिया जाए तो राहुल तिवारी से एफआईआर ली जाए और दर्ज कराई जाए।
8- इस पूरी खबर का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि राहुल तिवारी की एफआईआर संख्या 191 रात के 11:52 दर्ज होती है। हम एक बार फिर आपको इसी प्वाइंट पर गौर करने को कह रहे है कि एफआईआर का समय रात के 11:52 बजे है।
9-नियमानुसार एफआईआर दर्ज होने के बाद भी अतिरिक्त पुलिस की आवश्यकता होती है तो पुलिस को बुलाया जाता है। लेकिन एफआईआर 11:52 बजे दर्ज होती है और तीन थानों की पुलिस एफआईआर दर्ज होने से काफी समय पहले से ही थाने में मौजूद रहती है जो यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि एफआईआर दर्ज होने से पहले ही विकास को निपटाने की रणनीति बना ली गई थी।
10-रात के 11:52 पर एफआईआर दर्ज होती है। तीन थानों की पुलिस और सीओ 38 मिनट में थाना चौबेपुर पहुंच भी जाते हैं और विकास को लेकर सारी रणनीति बन भी जाती है और 12:30 मिनट पर थाने की जीडी में सभी की रवानगी हो भी जाती है।
11-थाना चौबेपुर से थाना बिठुर और थाना शिवराजपुर पहुंचने में न्यूनतम आधे घंटे का समय लगता है और साथ ही बिल्हौर से आने में भी आधे घंटे से अधिक का समय लगता है। मगर ये सारे पुलिसकर्मी न जाने किस तरकीब से 38 मिनट में थाना चौबेपुर आ गए। रणनीति बन गई और सब 12:30 मिनट पर रवानगी कराकर चौबेपुर चले गए।
12-पुलिस के मुताबिक रात के एक बजे से डेढ़ बजे के बीच में मुठभेड़ भी हो गई और आठ पुलिसकर्मी शहीद भी हो गए।
13-पुलिस की एफआईआर संख्या 191 को इस तरह लॉक किया गया कि किसी को वह नजर न आए जबकि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक हर एफआईआर को सार्वजनिक करने के लिए इंटरनेट पर लोड करना होता है। मगर एफआईआर नंबर 191 किसी को देखने को नहीं मिली।
14-जिस पुलिसकर्मी ने विकास को सूचना दी उसके मोबाइल से आया समय रात के 12 बजे के बाद का है। इससे साफ है कि एक घंटे के अंदर विकास अपने किसी साथी को बुलाने की स्थिति में नहीं था।
15-विकास दुबे पर साठ से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे। किसी भी मामले में पुलिस ने इतनी तत्परता कभी नहीं दिखाई जैसे इस समय दिखाई कि सवा घंटे में तीन थानों की पुलिस इकट्ठा भी हो जाती है और मुठभेड़ भी हो जाती है और पुलिसकर्मी शहीद भी हो जाते हैं।
16-जिस एफआईआर संख्या 191 के तहत पुलिस चौबेपुर जाती है उस एफआईआर के मुताबिक न तो पीडि़त के कहीं चोट लगी होती है न ही मेडिकल होता है। बिना मेडिकल के पुलिस इतनी जल्दी में होती है कि सारी कहानी डेढ़ घंटे में निपट जाती है।
17-सूत्रों से पता चला है कि सीओ को निर्देश दे दिए गए थे कि विकास का एनकाउंटर होना है। सीओ के फोन की मोबाइल टावर लोकेशन और शहीद हुए पुलिसकर्मियों की लोकेशन भी थाने में दर्ज एफआईआर से काफी समय पहले से थाना चौबेपुर में ही मिलेगी जो साबित करेगी एफआईआर दर्ज होने से पहले ही विकास को निपटाने की रणनीति बन रही थी।
18-सूत्रों के मुताबिक एक और दो जुलाई को जय बाजपेयी एसटीएफ के डीआईजी अनंतदेव से मिला था। साथ ही कुछ विधायक, मंत्री और कुछ प्रभावशाली लोगों से मिला था। इन दोनों दिनों की जय की मोबाइल टावर लोकेशन यह बात साबित कर देगी।
19-जय यह सुनिश्चित करना चाहता था कि विकास दुबे एनकाउंटर में मारा जाए जिसके बाद उसकी सैकड़ों करोड़ों की दौलत पर उसका कब्जा हो जाए। कई नौकरशाह, राजनेता और उद्योगपति भी यही चाहते थे क्योंकि विकास के साथ उनका भी करोड़ों का लेन-देन था। विकास ने ब्याज पर करोड़ों रुपया ले और दे रखा था।
इस सारी कहानी में उलटफेर तब हो गया जब विकास बच गया मगर आठ पुलिसकर्मी मारे गए। इसके बाद यह मामला तुल पकड़ गया और पूरे देश में जब सरकार की बदनामी हुई तब मजबूरी बन गई कि जय को भी जेल भेजा जाए। यह सारी पड़ताल साबित करती है कि विकास दुबे की एफआईआर और मुठभेड़ की कहानी में झोल ही झोल हैं। 4पीएम जल्द ही इसके बाद के घटनाक्रम को भी आपके सामने लाएगा। साथ ही पुलिस प्रशासन से भी अनुरोध करेगा कि यदि हमारी इस जांच में कुछ गलत तथ्य हो तो वे भी हमें प्रमाण के साथ उपलब्ध करा दें तो हम उसे भी प्रकाशित करेंगे।

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