आज है राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस

नई दिल्ली। हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। विधानचंद्र रॉय की जयंती और पुण्यतिथि 1 जुलाई को देश भर में मनाई जाती है। देश की पहली महिला डॉक्टर आनंदी बाई जोशी के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। चूंकि कोरोनावायरस प्रकोप पहली बार 2019 में उभरा था, इसलिए दुनिया भर के डॉक्टर संघर्ष करते नजर आए। चौबीसों घंटे काम करने से रोगियों को अपने प्रियजनों के नुकसान से निपटने में मदद करने के लिए, डॉक्टरों ने हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । देश राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाता है। आखिर 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाने के पीछे क्या कारण है। दरअसल यह खास दिन डॉ विधान चंद्र रॉय से जुड़ा है। उनकी जयंती और पुण्यतिथि 1 जुलाई को मनाई जाती है, उन्हें आधुनिक भारतीय चिकित्सा का जनक माना जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस के मौके पर चिकित्सा जगत को संबोधित करेंगे। इस कार्यक्रम का आयोजन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा किया जा रहा है। ट्वीट के जरिए उन्होंने कहा कि देश को अपने डॉक्टर समाज पर गर्व है। कोरोना क्राइसिस के समय में जिस तरह से डॉक्टरों ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है, वह सराहनीय है।
जब हम अपने जीवन में डॉक्टरों के महत्व का जश्न मनाते हैं, तो हमें उन लोगों को भी याद रखना चाहिए जो कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गए । भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई गोपालराव जोशी एक ऐसा नाम है जिसे याद रखने, और सम्मान करने की जरूरत है। महाराष्ट्र के एक रूढि़वादी ब्राह्मण परिवार में 31 मार्च 1865 को जन्मीं आनंदीबाई का नाम पहले यमुना रखा गया था। हालांकि, बाद में उनके पति ने उसका नाम बदल दिया। 9 साल की उम्र में आनंदीबाई ने गोपालराव जोशी से शादी कर ली, जो तब 25 साल के थे। गोपालराव ने आनंदीबाई से इस शर्त पर शादी की थी कि वह परिणय सूत्र में बांधने के बाद अपनी पढ़ाई शुरू कर देंगी। उआनंदीबाई को तब तक पढऩा या लिखना नहीं पता था जब तक कि उन्होंने गोपालराव से शादी नहीं की क्योंकि उसके माता-पिता उनकी शिक्षा प्राप्त करने के खिलाफ थे । शुरू में आनंदीबाई को पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी और उन्हें अक्सर इसके लिए उनके पति ने फटकार लगाई थी।
जब वह 14 साल की थीं, तब आनंदीबाई ने 10 दिन में अपनी नवजात बच्ची को खो दिया था। अपने बच्चे को खोने के बाद सदमे में आनंदीबाई डॉक्टर बनने और असमय होने वाली मौतों को रोकने का संकल्प लेती हैं । अपना मन बनाने के बाद आनंदीबाई ने अपनी पढ़ाई शुरू की और अपनी बेसिक शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने पेंसिलवेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में एक मेडिकल प्रोग्राम में दाखिला लिया-दुनिया के दो महिला मेडिकल कॉलेजों में से एक था यह उस वक्त में । अपने पति के समर्थन से आनंदीबाई कोलकाता से न्यूयॉर्क पहुंचने के लिए एक जहाज पर सवार हो गईं। दो साल बाद 19 साल की आनंदीबाई ने अमेरिका से वेस्टर्न मेडिसिन में ग्रैजुएशन किया और भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। आनंदीबाई जब घर लौटी तो उनका प्यार और प्रशंसा के साथ स्वागत किया गया। इतना ही नहीं उन्हें कोल्हापुर के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल के महिला वार्ड का चिकित्सा प्रभारी भी नियुक्त किया गया। आनंदीबाई ने महज 22 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी, लेकिन एक ऐसी विरासत को पीछे छोड़ दिया जो हमेशा के लिए जीवित रहेगी ।

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