बिकरू कांड : न्यायिक आयोग की जांच में डीआईजी अनंतदेव समेत 13 पुलिसकर्मी दोषी, सजा का ऐलान जल्द

  • विभागीय कार्रवाई इन सभी राजपत्रित अफसरों के खिलाफ जारी

4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। कानपुर के चर्चित बिकरू कांड मामले में न्यायिक आयोग ने शहर में तैनात रहे डीआईजी अनंत देव समेत 13 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया है। पूर्व में एसआईटी भी इन राजपत्रित अधिकारियों को आरोपियों से मिलीभगत, लापरवाही के आरोपों में दोषी ठहरा चुकी है। इनमें चार अफसरों के खिलाफ वृहद दंड के तहत पीठासीन अधिकारी आईजी रेंज लखनऊ लक्ष्मी सिंह सुनवाई कर रही हैं। अन्य को लघु दंड के तहत दंडित किया गया। बिकरू कांड की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया गया था। न्यायिक आयोग की जांच में अनंत देव के साथ एसपी (ग्रामीण) रहे प्रद्युमन सिंह, तत्कालीन सीओ कैंट आरके चतुर्वेदी, सूक्ष्म प्रकाश को भी दोषी ठहराया गया है। साथ ही एसएसपी दिनेश कुमार, एडिशनल एसपी बृजेश श्रीवास्तव, सीओ बिल्लौर नंदलाल और पासपोर्ट नोडल अफसर अमित कुमार पर भी अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश दिया गया है। विभागीय कार्रवाई इन सभी राजपत्रित अफसरों के खिलाफ जारी है। बिकरू कांड की जांच में 13 पुलिसकर्मी दोषी पाए गए हैं, इन पर क्या कार्रवाई होगी इसका जल्द फैसला होगा। बिकरू गांव में गैंगस्टर विकास दुबे और उसके गुर्गों ने डीएसपी और एसओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। बाद में विकास दुबे का भी एनकाउंटर हुआ था। जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित जांच आयोग ने की है। इससे पहले गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले में इस तीन सदस्यीय जांच आयोग ने पुलिस को क्लीन चिट दी थी, कहा गया था कि दुबे की मौत के इर्दगिर्द का घटनाक्रम जो पुलिस ने बताया है उसके पक्ष में साक्ष्य मौजूद हैं।

विकास दुबे नहीं जय बाजपेयी को जानता था: अनंतदेव

न्यायिक आयोग की जांच में वृहद दंड के दोषी ठहराए गए निलंबित डीआईजी अनंत देव ने अपने बयान भी आयोग के सामने दर्ज कराए थे। आयोग को दिए बयान में उन्होंने विकास दुबे के नाम से ही पूरी तरह से अनभिज्ञता जताई और इसके लिए तत्कालीन सीओ बिल्हौर शहीद देवेंद्र मिश्रा पर ठीकरा फोड़ा। उन्होंने यह स्वीकार किया कि जय बाजपेयी को वह मार्च 2020 से जानते थे। कार्यकाल के दौरान वह कभी विकास दुबे से नहीं मिले और न उन्होंने उसका कोई शस्त्र लाइसेंस ही स्वीकृत किया था। उन्होंने बताया कि 24 जुलाई 2019 को उन्होंने सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा को सभी पंजीकृत गैंगों का सत्यापन कराकर उनके खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया था। मगर उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।

यूपी विधानसभा की चार रिक्त सीटों पर हो सकते हैं उपचुनाव

  • जल्द निर्णय लेगा निर्वाचन आयोग

4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। भारत निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा की उन चार रिक्त सीटों पर उपचुनाव करा सकता है, जिनका कार्यकाल एक वर्ष से अधिक बचा है। चूंकि प्रदेश में आम चुनाव भी अगले वर्ष के शुरुआत में होने हैं। इसलिए निर्वाचन आयोग विधि विशेषज्ञों से विचार विमर्श करने के बाद जल्द निर्णय लेगा। यह सीटें औरैया, लखनऊ पश्चिम, बरेली की नवाबगंज व रायबरेली की सलोन सीट है। आयोग ने देश के उन सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और गृह सचिव से वीसी कर बाढ़ और कोरोना संक्रमण की मौजूदा स्थिति की जानकारी ली जहां उपचुनाव होने हैं। दरअसल, उत्तर प्रदेश में कुल सात सीटें इस समय रिक्त हैं। औरैया सीट रमेश चन्द्र दिवाकर, लखनऊ पश्चिम सीट सुरेश कुमार श्रीवास्तव, नवाबगंज (बरेली) सीट केसर सिंह, सलोन (रायबरेली) सीट दल बहादुर, चरथावल (मुजफ्फरनगर) सीट विजय कुमार कश्यप व अमापुर (कासगंज) सीट देवेन्द्र प्रताप सिंह के निधन हो जाने के कारण रिक्त हुई हैं। चूंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा की पहली बैठक 15 मई 2017 को हुई थी, इसलिए इसका कार्यकाल 14 मई 2022 तक है। औरैया व लखनऊ पश्चिम सीट इस साल 23 अप्रैल को रिक्त हुई हैं। नवाबगंज सीट 28 अप्रैल व सलोन सात मई को रिक्त हुई हैं। वहीं, चरथावल 18 मई व अमापुर 31 मई को रिक्त हुई हैं। सातवीं सीट रामपुर की स्वार विधानसभा है, जो सपा नेता आजम खां के बेटे अब्दुल्ला आजम की सदस्यता रद होने के कारण खाली हुई है। यह सीट 16 दिसंबर 2019 को रिक्त हुई थी। मामला कोर्ट में चलने के कारण यहां का भी उपचुनाव नहीं हो सका है। उत्तर प्रदेश के साथ जिन चार राज्यों का चुनाव 2017 में हुआ था उनमें गोवा का कार्यकाल 15 मार्च, मणिपुर का 19 मार्च, उत्तराखंड का 23 मार्च व पंजाब का 27 मार्च को खत्म होगा। यदि इस बार भी पांचों राज्यों के चुनाव साथ हुए तो अगले साल की शुरुआत में ही विधान सभा चुनाव होंगे। ऐसे में यदि उपचुनाव हुए तो तीन माह से अधिक का कार्यकाल सदस्यों को नहीं मिल पाएगा। प्रदेश के अफसरों ने चुनाव आयोग को सारे तथ्यों की जानकारी दे दी है। साथ ही यह भी बताया कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण काबू में है और जहां उपचुनाव होने हैं वहां बाढ़ की कोई समस्या नहीं है। सारी परिस्थितियों को देखते हुए चुनाव आयोग जल्द ही इस पर फैसला लेगा।

सुपरटेक केस : नियोजन प्रबंधक मुकेश गोयल सस्पेंड

  • एमराल्ड कोर्ट मामले में यूपी सरकार की पहली कर्रवाई

4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट मामले में बिल्डर और नोएडा विकास प्राधिकरण के अफसरों की मिलीभगत बेपर्दा होना शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट में प्राधिकरण की ओर से पैरवी की जिम्मेदारी संभाल रहे नोएडा के तत्कालीन नियोजन प्रबंधक मुकेश गोयल उच्च अधिकारियों से तथ्य छिपाने के दोषी पाए गए हैं। उनकी संदिग्ध भूमिका सामने आते ही शासन ने वर्तमान में इसी पद पर गीडा में तैनात गोयल को निलंबित कर दिया है। सीएम योगी के सख्त निर्देश के बाद नोएडा विकास प्राधिकरण के इस सनसनीखेज मामले में शासन ने अधिकारी-कर्मचारियों की जांच शुरू करा दी है। पहली कार्रवाई तत्कालीन नियोजन प्रबंधक मुकेश गोयल पर हुई है। औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने बताया कि प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए नियोजन प्रबंधक मुकेश गोयल को निलंबित कर दिया गया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर गहन जांच कराई जा रही है। जो भी अधिकारी-कर्मचारी ऐसे किसी मामले में संलिप्त पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। अपर मुख्य सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास अरविंद कुमार की ओर से जारी निलंबन आदेश में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में मै.सुपरटेक लिमिटेड बनाम एमराल्ड कोर्ट आनर रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन एंड अदर्स के प्रकरण की सुनवाई बीती चार अगस्त को नियत थी। इसमें प्राधिकरण के नामित अधिवक्ता से संपर्क करने और न्यायालय में उपस्थित होने के लिए मुकेश गोयल को नामित किया गया था। इस पुराने प्रकरण की सुनवाई में वह लगातार भाग ले रहे थे। फिर लंबे समय बाद जब इतने महत्वपूर्ण केस की सुनवाई थी, तब गोयल ने उच्च अधिकारियों से तथ्य छिपा लिए। उन्हें बताया ही नहीं कि इस मामले में प्राधिकरण का पक्ष क्या है। आदेश में कहा गया है कि प्राधिकरण द्वारा 28 अप्रैल, 2014 को सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। इसमें मुख्य कारण बताया गया कि प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत मानचित्र नोएडा भवन नियमावली-2010 और नेशनल बिल्डिंग कोड-2005 के प्रविधानों के अनुरूप है। न्यायालय ने पांच मई, 2014 को टावर संख्या 16 और 17 में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए। विशेष अनुमति याचिका में 28 अप्रैल, 2014 से बीती चार अगस्त तक सिर्फ नौ माह बीच में छोड़कर लगातार सुनवाई की तारीख लगती रही। शासन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से इस मामले का संज्ञान लिया है, उससे प्राधिकरण की छवि राष्ट्रीय स्तर पर धूमिल हुई है। उल्लेखनीय है कि मुकेश गोयल अभी गीडा में नियोजन प्रबंधक के पद पर तैनात थे और निलंबन के बाद वहीं संबद्ध कर दिए गए हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button