आरएलडी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर फंसा पेंच

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस और बसपा से हाथ मिलाकर अपना राजनीतिक भाग्य आजमाने वाले सपा प्रमुख अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़ी पार्टियों के बजाय छोटे दलों के साथ गठबंधन का फॉर्मूला आजमा रहे हैं। भाजपा के नक्शेकदम पर चलते हुए अखिलेश ने भले ही जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल, संजय चौहान की जनवादी पार्टी और केशव देव मौर्य की महान दल से मिलकर चुनाव लडऩे का खाका तैयार किया हो लेकिन सपा अपने सहयोगियों के साथ सीटों के बंटवारे का फार्मूला तैयार करने में अभी तक नाकाम है।
आरएलडी को कृषि कानून के विरोधी किसान आंदोलन से राजनीतिक जीवन मिला है । पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी की स्थिति मजबूत होते देख अन्य दलों के नेता भी जयंत चौधरी की ओर रुख कर रहे हैं। किसान आंदोलन के बाद से एक दर्जन से अधिक बड़े नेता आरएलडी से जुड़ चुके हैं। आरएलडी की राजनीतिक ताकत बढऩे के कारण जयंत चौधरी की महत्वकांक्षा भी बढऩा शुरू हो गई है। जिसके चलते वह अब सौदेबाजी की स्थिति में आ गए हैं।
आरएलडी वेस्ट यूपी में काफी संख्या में सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही है। आरएलडी-एसपी 2022 में एक साथ चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन दोनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे का फार्मूला अभी तय नहीं हुआ है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो आरएलडी 65 से 70 विधानसभा सीटों की मांग कर रही है, जिस पर एसपी अभी सहमत नहीं है। इतना ही नहीं आधा दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां सपा और आरएलडी दोनों ही पार्टी के दावे से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 में सपा-बसपा ने आरएलडी को सिर्फ तीन सीटें दी थीं। ऐसी स्थिति में सपा 2022 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 20 से 22 सीटें देने के मूड में है, जिस पर आरएलडी ने सहमति जताई है। जयंत चौधरी ने पार्टी में अन्य दलों के नेताओं को बड़ी संख्या में शामिल किया है, ये सभी टिकट का दावा कर रहे हैं। यही वजह है कि आरएलडी ने एसपी के सामने अपनी मांग बढ़ा दी है।
मीडिया में आ रही खबरों की मानें तो जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव को सीटों की सूची भेजी है, इनमें बागपत, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, बिजनौर, मथुरा, हाथरस, बुलंदशहर, अमरोहा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, नोएडा और आगरा जिले की विधानसभा सीटें शामिल हैं। यह पश्चिमी यूपी का वह इलाका है, जहां जाट और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
इसके साथ ही अमरोहा के नौगांव सादात, मथुरा के मांट, बागपत के बरोट, मेरठ के सिवालकी, सरधना, मुरादाबाद की काठ और मुजफ्फरनगर की मीरपुर विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां सपा और आरएलडी दोनों ही अपने दावे ठोंक रहीं हैं। इसका कारण यह है कि अखिलेश यहां अपने पसंदीदा नेताओं को चुनाव लड़ाना चाहते हैं, जबकि जयंत अपने करीबी नेताओं को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं।
इसके अलावा आरएलडी ने बिजनौर जिले की तीन सीटों पर दावा किया है, जो नटोर, चांदपुर और बिजनौर सदर हैं, जिनमें सपा ने सिर्फ बिजनौर सीट पर ही सहमति जताई है। इसी तरह बागपत जिले की सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी आरएलडी कर ही है, जबकि सपा बड़ौत सीट पर दावा कर रही है। इसी तरह हाथरस और मथुरा जिले की सीट को लेकर भी दोनों दलों के बीच सहमति नहीं बन पाई है।
वेस्ट यूपी में आरएलडी की बढ़ती राजनीतिक ताकत और जयंत चौधरी की मांग ने एसपी को चिंता में डाल दिया है। सपा का कोर वोट बैंक यादव पश्चिमी यूपी में बहुत ज्यादा नहीं है और पार्टी आधार सिर्फ मुस्लिम वोटों पर टिका है। आरएलडी नेताओं का तर्क है कि अगर सपा पश्चिमी यूपी में अपनी ताकत के हिसाब से आरएलडी को ज्यादा सीटें नहीं देती है तो फिर बीजेपी को हराना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि जाट को वोटर की पसंद आरएलडी का चुनाव चिन्ह पसंद है।
इसके साथ ही सपा मुखिया अखिलेश यादव भी वेस्ट यूपी में भविष्य की राजनीति को लेकर गुणाभाग कर रहे हैं ताकि मुस्लिम वोट आरएलडी के कोर वोट बैंक में न बदल जाए। ऐसी स्थिति में वह अपना राजनीतिक आधार बनाए रखना चाहते हैं, जिसके लिए आरएलडी के टिकट पर भी अपने कई नेताओं को चुनाव लड़ाने की चर्चाएं चल रही हैं। ऐसी स्थिति में माना जा रहा है कि सपा और आरएलडी के बीच सीट बंटवारे को लेकर कमेटी बनाने के लिए कदम उठाया जा सकता है।
आरएलडी की तरह जनवादी पार्टी और महान दल के के साथ सीटों के बंटवारे का कोई पेंच सपा के साथ उलझा हुआ नहीं है। महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने कहा कि वह यूपी की दस सीटों के भीतर चुनाव लड़ेंगे, जिस पर सपा के साथ समन्वय बना है। कुशीनगर, मिर्जापुर, अंबेडकर नगर, जौलन, मुरादाबाद, लखीमपुर, बदायूं, बरेली, कासगंज, मैनपुरी में हमारा राजनीतिक जनाधार है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि अभी यह तय नहीं है कि हम सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेंगे या अपने ही चुनाव चिन्ह पर। यह जरूर है कि हम अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने की पूरी कोशिश करेंगे। ऐसी स्थिति में अगर हमें सपा के चुनाव चिन्ह पर भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारने होंगे तो फिर हम पीछे नहीं हटेंगे। इसी तरह जनवादी पार्टी के अध्यक्ष संजय चौहान भी अखिलेश यादव को सीएम बनाने के लिए पूरी तरह से अपनी ताकत लगा रहे हैं।
पूर्वांचल की 10 से अधिक विधानसभा सीटों पर चौहान बिरादरी (नोनिया) निर्णायक भूमिका निभा रही है। उन्हें जुटाने के लिए जनवादी पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय सिंह चौहान भाजपा, प्रदेश बचाओ, जनक्रांति यात्रा निकाल रहे हैं। संजय सिंह चौहान केवल जातिगत पहचान को मुद्दा बनाकर राजनीतिक रास्ते पर आ गए हैं। उनका दावा है कि मऊ जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में उनकी जाति के 50 हजार अधिक मतदाता हैं, जबकि गाजीपुर के जाखनियां में करीब 70 हजार मतदाता हैं। इसी तरह बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महाराजगंज, चंदौली और बहराइच में भी उनके समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हैं। पूरे राज्य में नोनिया की आबादी 1.26 प्रतिशत है।
यूपी में अखिलेश यादव ने भले ही संजय चौहान की जनवादी पार्टी और केशव देव मौर्य की महान पार्टी के साथ अच्छा तालमेल बनाए रखा हो और पूर्वांचल से लेकर रुहेलखंड तक खुद को मजबूत मानते हों । लेकिन आरएलडी के साथ सीटों के बंटवारे का मुद्दा हल किए बिना पश्चिमी यूपी में भाजपा को हराना आसान काम नहीं होगा।

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