कोरोना काल में लाशों को जलाने के लिए मंगायी गयी लकड़ी अलाव के लिए जल रही है राजभवन में

4पीएम के स्टिंग में खुलासा

  • चिता की अधजली लकड़ियों को भी नहीं छोड़ा नगर निगम के अफसरों ने
  • अलाव के लिए करोड़ों रुपये जारी पर अभी तक नहीं हुआ टेंडर
  • कोरोना की दूसरी लहर में लाशों को जलाने के लिए नहीं मिली थीं लकड़ियां
  • श्मशान की लकड़ी से सर्दी दूर कर रहे अफसर रोजाना आठ क्विंटल लकड़ी भेजी जाती है राजभवन

क्षितिज कान्त

लखनऊ। कोरोना की दूसरी लहर में भले ही यूपी के लोगों को अपनों की लाश जलाने के लिए श्मशान में लकड़ी नहीं मिली हो लेकिन इन्हीं लकड़ियों से राजभवन में बैठे तमाम अफसर सर्दी दूर कर रहे हैं। बैकुंठ धाम से राजभवन में अलाव जलाने के लिए रोजाना आठ क्विंटल लकड़ी नगर निगम के कर्मचारी गाडिय़ों में भरकर भेजते हैं जबकि इसके लिए अलग से सरकार ने करोड़ों रुपये जारी किए हैं। नगर निगम के अफसरों ने चिता की अधजली लकडिय़ों को भी नहीं छोड़ा और उसका इस्तेमाल भी अलाव जलाने में किया जा रहा है। 4पीएम के स्टिंग से यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है।

लखनऊ का बैकुंठ धाम। कई चिताएं एक साथ जल रही हैं। लोगों के चेहरों पर अपनों के जाने का दुख है। अचानक दोपहर तक दृश्य बदल जाता है। श्मशान घाट में नगर निगम की दर्जन भर गाडिय़ां धड़धड़ाते हुए पहुंचती हैं। नगर निगम के कई दर्जन कर्मचारी बैकुंठ धाम में रखी लकडिय़ों को उठाकर तेजी से गाडिय़ों में भरते हैं। ये लकड़ियां लाशों को जलाने के लिए नहीं बल्कि अफसरों की सर्दी दूर करने के लिए राजभवन भेजी जानी है। जी हां, चौंकिए नहीं, आप सही सुन रहे हैं। 4पीएम आपको ग्राउंड जीरो से इसकी हकीकत बता रहा है। आला अफसरों के इशारे पर यह सारा खेल बैकुंठ धाम यानी श्मशान घाट में खेला जा रहा है। बैकुंठ धाम का कोई कोना नहीं जहां से लकडिय़ों को उठाया न जाता हो। इनमें वे अधजली लकडिय़ां भी शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल लाशों को जलाने में किया गया था। राजभवन में श्मशान की लकड़ियों से अलाव की व्यवस्था कर रहे सहजराम बताते हैं कि पिछले कई दिनों से यहां से लकड़ियों को अलाव के लिए भेजा जा रहा है। रोजाना सात से आठ क्विंटल लकड़ी राजभवन भेजी जाती है।

हालांकि वहां मौजूद अन्य कर्मचारियों ने कुछ भी बोलने से मना कर दिया। उनका कहना था कि यह सब नगर आयुक्त के संज्ञान में है। हम ऊपर से आए आदेश के मुताबिक लकडिय़ों को भेज रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि अभी अलाव के लिए लकड़ियों की खरीद के लिए टेंडर नहीं पास हुआ है। जाहिर है ये लकडिय़ां लाशों को जलाने के लिए रखी गयी है और अफसर इससे अपनी सर्दी दूर कर रहे हैं। हालांकि सरकार ने अलाव जलाने के लिए अलग से बजट आवंटित किया है। इस मामले में पूछताछ पर वहां मौजूद अन्य लोगों ने चुप्पी साध ली।

दूसरी लहर में लकड़ी नहीं मिलने से नदियों में बहायी गयी थीं लाशें

कोरोना की दूसरी लहर में बैकुंठ धाम में लाशों को जलाने के लिए लकड़ियां नहीं मिल रही थी। जब उपलब्ध होती थी तो बेहद महंगे दामों में बेची जाती थी। ऐसे में तमाम लोगों ने विद्युत शवदाह गृह का सहारा लिया। यह हालत पूरे प्रदेश के श्मशान घाटों की थी। लकड़ियां नहीं मिलने के कारण लोगों ने गंगा समेत विभिन्न नदियों में शवों को बहा दिया था। अब तीसरी लहर की आशंका है और श्मशान की लकडिय़ां अलाव के लिए भेजी जा रही हैं।

कहां गया बजट

प्रदेश सरकार ने अलाव के लिए लकड़ी की व्यवस्था करने और कंबल बांटने के लिए 19.75 करोड़ का बजट पारित किया है। इसके अलावा प्रति तहसील पांच लाख रुपये इसके लिए आवंटित किए हैं। सवाल यह है कि जब अलाव के लिए अलग से पैसा जारी हुआ है तो श्मशान की लकड़ियों  का इस्तेमाल राजभवन समेत अन्य स्थानों पर क्यों किया जा रहा है? क्या सरकार की नाक के नीचे अलाव के लिए जारी धनराशि में हेराफेरी की जा रही है?

नगर आयुक्त ने नहीं उठाया फोन

इस मामले में नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी से बात करने की कई बार कोशिश की गयी। फोन के जरिए उनसे बात करने की कोशिश की गयी लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

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