यहां तो एक महीने में ही 25 किसानों ने की आत्महत्या!

नई दिल्ली। एक ओर पूरा देश और दुनिया मुंबई की चकाचौंध से वाकिफ हैं और उसके देश की आर्थिक राजधानी का खिताब दिया जाता है. वहीं दूसरी ओर यही मुंबई जिस प्रदेश का हिस्सा उसी प्रदेश से सबसे ज्यादा किसानों की खुकुशी की खबरें सामने आती हैं. देश में अगर कहीं सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्या की खबरेंब आती है तो वो है महाराष्ट्र. इस वर्ष भी यहां प्राकृति ने अपना कहर दिखाया है और बारिश, बाढ़ और चक्रवात के कारण यहां पर बड़े पैमाने पर फसलों को नुकसान हुआ है.
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दुर्भाग्य से, महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या की संख्या सबसे अधिक है. वहीं एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के बीड जिले में किसानों ने आत्महत्या की है. महज 30 दिनों में 25 अन्नदाता अपनी जान गंवा चुके हैं. यह एक बड़ा सवाल है। ऐसा क्यों हुआ? किसान नेताओं का कहना है कि भारी बारिश से फसलों को नुकसान पहुंचा है. वह इस दर्द को सहन नहीं कर पा रहे हैं. वहीं सरकार का कहना है कि भारी बारिश, फसल निरीक्षण, पंचनामा और अब नुकसान की वास्तविक राशि किसानों के खाते में जमा होने लगी है. आपको बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने 10 हजार करोड़ के मुआवजे के पैकेज की घोषणा की है.
लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि अगर सरकार सोच रही है कि इस मुआवजे की राशि से किसानों को मुआवजा मिलेगा तो ऐसा नहीं है. फसल के नुकसान की भरपाई पैसे से की जा सकती है लेकिन उन किसानों के परिवारों का क्या जो भारी बारिश के कारण फसलों की बर्बादी को देखकर डिप्रेशन में अपनी जान गंवा चुके हैं.
कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना है कि क्या महाराष्ट्र सरकार एक जिले को संभालने में सक्षम नहीं है. खेती से जुड़ी अधिक समस्याओं वाले जिलों में केंद्र और राज्य को एक साथ विशेष पैकेज देकर किसानों की स्थिति सुधारने की जरूरत है. ताकि किसान आत्महत्या करने को मजबूर ना हो. यह बहुत चिंता का विषय है कि एक ही जिले में एक ही महीने में इतने किसान आत्महत्या कर रहे हैं. महाराष्ट्र में बैठे हैं बड़े बड़े कारपोरेट, परेशान किसानों की मदद करना क्या उनका फर्ज नहीं?
पिछले 10 महीनों में बीड जिले में किसानों की आत्महत्या की संख्या दर्शाती है कि कृषि सिंचाई के लिए कोई स्थायी जलापूर्ति नहीं है. भारी बारिश के बाद कोई योजना नहीं है जिससे कि किसानों की आत्महत्या को रोका जा सके. जनवरी से 30 अक्टूबर के बीच जिले में 158 किसानों ने आत्महत्या की. आत्महत्याओं पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि किसानों और खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याएं रुकने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं.
वर्ष 2020 के दौरान, देश में कृषि क्षेत्र में 10,677 लोगों ने आत्महत्या की, जो देश में कुल आत्महत्याओं का 7 प्रतिशत (1,53,052) है. इसमें 5,579 किसानों और 5,098 खेतिहर मजदूरों की आत्महत्याएं शामिल हैं.
2019 से 2020 की तुलना करें तो 2019 में 5,957 किसानों और 4324 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की थी जबकि 2020 में यह आंकड़ा क्रमश: 5,579 और 5,098 था.
2020 में खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या के मामले बढ़े हैं. 2020 में आत्महत्या करने वाले 5,579 किसानों में से 5,335 पुरुष और 244 महिलाएं थीं, जबकि आत्महत्या करने वाले 5,098 खेतिहर मजदूरों में से 4621 पुरुष और 477 महिलाएं थीं.
इस तरह के कुल 280 आत्महत्या के मामले पंजाब में, 257 हरियाणा में दर्ज किए गए. पश्चिम बंगाल, बिहार, नागालैंड, त्रिपुरा, उत्तराखंड, चंडीगढ़, दिल्ली, लद्दाख, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में आत्महत्या की शून्य रिपोर्ट थी. यहां किसानों और खेतिहर मजदूरों को विभाजित करके आंकड़े दिए गए हैं। यहां किसान वे हैं जिनके पास अपनी जमीन है और वे उसमें खेती करते हैं, जबकि खेतिहर मजदूर वे हैं जिनके पास अपनी जमीन नहीं है और उनकी आय का साधन दूसरे के खेतों में काम करना है।
किसान सभा नेता अजीत नवले का कहना है कि केंद्र सरकार की नीतियों और नाकामियों से किसानों की आत्महत्याएं बढ़ रही हैं. सरकार कह रही थी कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी, लेकिन इसके विपरीत उनकी आत्महत्या दर बढ़ रही है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.

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