प्रणव रॉय भी हुए बाहर! देश की मीडिया को क्यों काबू में करना चाहते है अंबानी और अडानी

संजय शर्मा

लखनऊ। अडानी द्वारा एनडीटीवी को खरीदे जाने में भले ही सारी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया हो मगर देश के सामने एक बड़ा सवाल यह खड़ा है कि आखिर एनडीटीवी को खरीदने में अडानी का क्या हित है। सवाल सिर्फ अडानी का नहीं अंबानी का भी है और सवाल इन दोनों का भी नहीं, देश के लोकतंत्र का है। आखिर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर पूंजीवादियों का कब्जा क्या देश को एक ऐसी अंधेरी सुरंग की तरफ लेकर जा रहा है जिसका दूसरा सिरा कहीं नजर नहीं आता। देश में मीडिया वैसे भी गोदी मीडिया में बदल गई है और अब एनडीटीवी का बिक जाना इस ताबूत की आखिरी कील है।
देश में जब अंबानी ने मीडिया को अपने कब्जे में लेना शुरू किया तभी देश को समझ आ गया था कि पूंजीपति नहीं चाहते कि उनका घिनौना सच देश के सामने आए। इस सच को छिपाने के लिए एक ही सूरत है कि देश की मीडिया पर कब्जा कर लो। जिससे 130 करोड़ की जनता तक कभी सच न पहुंचे। हां और वो कभी जान भी न पाएं कि आखिर देश की सारी संपदा पर सिर्फ 7 प्रतिशत लोगों का कब्जा है। उनको ये दिखाया जाए कि भारत विश्वगुरु बनने के कगार पर है और इसी सच के साथ देश को एक ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया जाए जो सिर्फ नफरत की भाषा समझता है और सिर्फ नफरत की भाषा बोलता है। इसी क्रम में सबसे पहले अंबानी ने शुरुआत की और देश के बड़े-बड़े टीवी चैनल खरीदने शुरू किये और उसमें बैठे देवगन, अमन चोपड़ा जैसे पत्रकारों ने देश में आग लगाने का काम शुरू किया। इस दौर में एनडीटीवी देश के एक ऐसे चैनल के रूप में सामने आया जो अपनी सच की लड़ाई लड़ रहा था। रवीश के प्राइम टाइम को दुनिया भर में देखा जा रहा था । जब एनडीटीवी को रोका नहीं जा सका तो फिर उसे खरीदने की जिम्मेदारी अडानी को दी गई और फिर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक कुठाराघात होते हुए हम सब देख रहे हैं।

अडानी ने अंबानी से जुटाया था कर्ज देने के लिए पैसा

एनडीटीवी के मालिक प्रणव राय के लिए करीब 14 साल पहले लिया गया कर्ज गले की फांस बन गया। इस कर्ज से कंपनी कभी छुटकारा नहीं पा सकी। 2009 और 2010 में वीसीपीएल ने प्रणव रॉय के स्वामित्व वाली आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड को 403.85 करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त कर्ज दिया था। इस कर्ज के बदले आरआरपीआर ने वीसीपीएल को वारंट जारी किया। जिसने वीसीपीएल को कर्ज को आरआरपीआर में 99.9 प्रतिशत हिस्सेदारी में बदल देने का अधिकार दिया। अडानी समूह उस समय इस पूरे मामले में कहीं भी नहीं था। आरआरपीआर को कर्ज देने के लिए वीसीपीएल ने मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी रिलायंस स्ट्रैटेजिक वेंचर्स से पैसा जुटाया था।

अडानी समूह की हुई अचानक एंट्री से बिगड़ी बात

23 अगस्त को अडानी समूह की सहायक कंपनी एएमजी मीडिया नेटवर्क्स लिमिटेड ने वीसीपीएल को 113.75 करोड़ रुपये में खरीद लिया। तब तक एनडीटीवी ने वीसीपीएल का कर्ज नहीं चुकाया था। एनडीटीवी लिमिटेड ने तब स्टॉक एक्सचेंजों से कहा था कि एनडीटीवी या इसके संस्थापक-प्रमोटरों के साथ किसी भी चर्चा के बिना सीपीएल नोटिस दिया गया था। एनडीटीवी में रॉय परिवार की 32.36 प्रतिशत हिस्सेदारी है। प्रणय रॉय की हिस्सेदारी 15.94 प्रतिशत है, जबकि राधिका रॉय की 16.32 प्रतिशत हिस्सेदारी है। अगर अडानी अपने ओपन ऑफर से 26 प्रतिशत हिस्सेदारी और खरीद लेता है, तो एनडीटीवी में उसकी कुल हिस्सेदारी 55.18 प्रतिशत हो जाएगी। जिससे वह एनडीटीवी के प्रबंधन पर कब्जा हासिल कर लेगा।

एनडीटीवी का अडानी के हाथों में आना इस बात का संकेत है कि सत्ता के चरणों के टोले में एक और भोंपू शामिल हो जाएगा। दरअसल वर्तमान सत्ता और सत्ताधारी असहमति, आलोचना की एक भी आवाज को स्वतंत्र नहीं रहने देना चाहते। येन-केन-प्रकारेण ऐसी हर आवाज को या तो धन-बल से खरीदा जा रहा है या सत्ता के औजारों से उनकी बोलती बंद की जा रही है। यह एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये अच्छे संकेत नहीं हैं।
 डॉ. राकेश पाठक, वरिष्ठï पत्रकार

एक पत्रकार से निपटने के लिए पूरा चैनल खरीद डाला। जब संस्थाएं ही ढह रही हों -ढहाई जा रही हों-एक चैनल के ढहने-ढहाने पर क्या रोना।
ओम थानवी, वरिष्ठ पत्रकार

एनडीटीवी अस्त हो गया। संस्था के नाम पर भले ही एनडीटीवी मौजूद रहे, लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में अनेक सुनहरे अध्याय लिखने वाले इस संस्थान का विलोप हो रहा है। हम प्रणव रॉय और राधिका रॉय की पीड़ा समझ सकते हैं ।
   राजेश बादल, वरिष्ठï पत्रकार

NDTV. पूर्ण विराम
रुबिका लियाकत, पत्रकार

NDTV में बदलाव पर किसी दु:ख या अफसोस की आवश्यकता नहीं है। आज टेलीविजन न्यूज मीडिया के साथ सोशल मीडिया भी काफी सक्रिय है और सोशल मीडिया आज न्यूज मीडिया की किसी भी कमी को पूरा करने में समर्थ है।                                                                                                                      दिनेश के वोहरा, राजनीतिक विश्लेषक

एनडीटीवी से प्रणव रॉय का इस्तीफा। साथ ही एक युग का अंत। बचपन से द  वर्ल्ड  दिस वीक और चुनावों में उनका विश्लेषण देख कर पूरी पीढ़ी बड़ी हुई।
 नरेंद्र नाथ मिश्रा, लेखक

RIP एनडीटीवी? जहरीली मीडिया स्पेस में ताजी हवा की सांस के रूप में आपका होना अच्छा था।
 प्रशांत भूषण, वरिष्ठï अधिवक्ता, सुप्रीमकोर्ट

आखरी ‘स्तंभ’ भी गिरा, चलो अब सब ‘गोदी’ हो गए।
 आचार्य प्रमोद कृष्णम, कांग्रेस

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